Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 34
________________ २२६ कसरतसे कुछ लाभ नहीं होगा। इससे भी मनका शरीर पर पड़नेवाला प्रभाव सिद्ध होता है । यदि तुम्हें इस लेख में बतलाई हुई गुप्त क्रियाओं से लाभ उठाना हो तो तुम इन दो उपयोगी और कार्य में लाने योग्य सिद्धान्तोंको स्वीकार कर लो, एक तो तुम्हारा मन बहुत सामर्थ्यवान है और दूसरा तुम्हारे मनका तुम्हारे शरीर पर पूर्ण अधिकार हैं । इन दोनों सिद्धान्तों को स्वीकार करके आगे बढ़ो, इनका अनुभव करो और प्रयोग करके देखो । प्रयोग करने में यदि वे झूठे प्रतीत हों तो फिर अवश्य उनको फेंक देना । मनकी क्रियाके आधार पर उसके दो विभाग | जैनहितैषी - तुम्हारे मन तो एक ही है और वह विभक्त भी नहीं हो सकता है, तो भी मानसशात्री मनके द्वारा होनेवाली भिन्न भिन्न क्रियाओं और व्यापारोंको लक्ष्य करके उसे Subconscious mind और Subluminal mind ये दो नाम देते हैं | महासागरका पानी तो सर्वत्र एक ही है. परंतु भिन्न मित्र देशों के पीप आनेसे उसके अलग नाम पड़ जाते हैं जैसे भूमध्य समुद्र, लालसागर इत्यादि । हमें इस समय मानस शक्तियोंके द्वारा किये गये मनोव्यापारोंके सूक्ष्म पृथक्करणोंको जानने की आवश्यकता नहीं है। परंतु हम उसके सीधे और सरल दो विभाग करते हैं । एक आन्तरिक क्रियाओंको करनेवाला और दूसरा बाहरकी क्रियायें करनेवाला । बाहरकी क्रियायें करनेवाला मन ( Objective mind) विचार करता है, तर्क करता है, अनुमान करता है, सिद्धान्त नियत करता है और उन्हें सिद्ध करता है तथा हाथ पैर आदि शरीरके सब अवयवोंक स्नायुओंको गति देता है। आंत - रिक क्रियायें करनेवाला मन ( Subjective mind ) संस्कारको, सिद्धान्तको ग्रहण करता Jain Education International [ मांग १३ है, आवश्यकता पड़ने पर उन्हें अपने भंडारमेंसे बाहर निकालता है और शरीर के भीतरी अवयवोंकी गतिको नियमित करता है। तुम्हारे शरीरमें रुधिर रात दिन घूमा करता है, हृदय निरंतर धड़कता रहता है, पाचन क्रियाके अवयव भोजनमेंसे पोषकतत्त्व खींचकर शेषको मलके रूपमें बाहर निकाला करते हैं, स्वप्नमें मच्छर या कोई दूसरा जंतु काटता है तो उसका प्रतीकार कर देके लिए हाथ ऊँचा उठता है । ये और ऐसीऐसी सब ही क्रियायें मनके द्वारा होती हैं । इन क्रियाओं पर तुम्हारा अधिकार नहीं है। तुम अपनी इच्छा के अनुसार रुधिरकी गति में या हृदय स्फुरण में फेरफार नहीं कर सकते हो : परंतु इसी मन पर इस लेख में बताई हुई क्रिया ओंके द्वारा तुम्हें अधिकार प्राप्त करना है। उसे ही तुम्हारी इच्छानुसार कार्य करनेवाला बनाता है। जो तुम इतना कर सके तो समझना कि तुम्हार कार्य सिद्ध हो गया । आंतरिक मन पर विशेष प्रकाश । • कदाचित् तुम सोचते होगे कि यह कार्य बहुत कठिन है, परंतु यथार्थ में यह कार्य वैसा कठिन नहीं है । यदि तुम अपनी आंतरिक मनकी प्रक्रियाओंको बराबर समझ लोगे और बताई हुई रीति के अनुसार प्रयोग करोगे, तो तुम एक सप्ताह में अपने आरोग्य में, अपने विचारमें, अपनी प्रकृतिमें महत्त्वपूर्ण परि वर्तनको देखोगे तुम्हें इस बातको जान लेना चाहिए कि तुम्हारा आंतरिक मन जो शरीर के अंदरकी क्रियायें करता है, बहुत कोमल और संस्कारग्राही है प्रिय और स्वतंत्र और बाह्य मन स्वतंत्रताकाम करनेवाला है । वह सदैव विचार करता है, तर्क करता है, और सत्यासत्यकी परीक्षा करता है । इसलिए उसे जो आज्ञा दी जाती है उसे वह एकदम नहीं स्वीकार करता । उस पर वह नाना तरह के For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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