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जैनहितैषी -
काम माता और पिता दोनों पर होता है । उस समय दोनोंका योग्य होना आवश्यक है, अन्यथा एकका काम दूसरा बिगाड़ देगा। गाड़ी में यदि एक घोड़ेका मुँह इस ओर हो और दूसरेका उस ओर, तो वह चल नहीं सकती । इसी तरह यदि माता मूर्खा हो और पिता बुद्धिमान हो, अथवा पिता मूर्ख हो और माता बुद्धिमती हो, तो संतानका पालन पोषण ठीक नहीं हो सकता । उत्तम रीति से संतानपालन करने के लिए दोनों बुद्धिमान होना चाहिए। सबसे पहली शिक्षा जो बच्चोंके लिए आव श्यक है, यह है कि उन्हें आज्ञा पालन करना सिखलाना चाहिए और इस गुणको उनमें इतना बढ़ा देना चाहिए कि उन्हें इस बातका विश्वास हो जाय कि उनके मातापिता उनसे अधिक बुद्धिमान हैं; परंतु यदि वे देखेंगे कि किसी विषयमें मातापितामें मतभेद हो गया है तो उनका विश्वास जाता रहेगा और अब उनको संदेह हुआ करेगा कि क्या करना चाहिए। मातापिताको उचित है कि वे कभी बच्चे के सामने एक दूसरे की शिकायत न करें। यदि वे किसी दिषयमें सहमत न हों तो उन्हें चाहिए कि बच्चेसे अलग होकर परस्पर के मतभेदको दूर कर लें ।
कुछ मातायें बच्चोंको बिगाड़ देती हैं और जब बिगड़े हुए बच्चे अपराध करते हैं तो वे मातायें उनको पितासे छिपाकर दण्डसे बचा लेती हैं। केवल इतना ही नहीं, वे स्वयं झूठ बोलती हैं और बच्चों को झूठ बोलना और धोखा देना सिखलाती हैं । यदि पिता बच्चों को उनके अवगुणोंके कारण का है अथवा दण्ड देता है, तो कोई कोई मूर्खा माता पिताको दुष्ट और अन्यायी तक कह डालती हैं और बच्चे को हटा लेती हैं। इसका क्या परिणाम होता है ? यह कि बच्चा बुराई में और भी पक्का हो जाता है। ऐसी माताके होते हुए बच्चे को और किसी शत्रुकी आवश्यकता नहीं रहती ।
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[ भाग १३
इसका नाम प्यार नहीं है । सच्चा प्यार यह कि बच्चों की बुराइयोंको दूर किया जाय और उन्हें अच्छी अच्छी मलाईकी बातें सिखलाई जावें । जो पुरुष बुद्धिमान होतें हैं वे अपनी स्त्रियोंको ऐसी बातें समझाते रहते हैं, परन्तु मूर्खा स्त्रियाँ एक नहीं सुनतीं । मातापि - ताके लिए आवश्यक है कि उनका व्यव हार बच्चों के साथ एकसा हो । मूर्खा मातायें स इसके विपरीत करती हैं । स्वयं अपना कोई सिद्धांत नहीं रखतीं । अभी वे एक काम के लिए बच्चेकी सराहना करती हैं और अभी थोड़ी देर में उसी कामके लिए उसे बुरा भाल कहने लगती हैं । अभी प्रसन्न हैं तो बच्चेकी प्रशंसा कर रही हैं चाहे उसने कुछ चुरा लिया हो और अप्रसन्न हैं तो उसे मारने लगती हैं, चाहे उसने कोई भी बुरा काम न किया हो। कहनेसे कर दिखाना अच्छा होता है । उसका असर अपने आप हो जाता है । कहावत है कि एक केंकड़े को उसकी मTने कहा कि बेटा, तुम सदा टेढ़े चलते हो, सीधे क्यों नहीं चला करते ? के कड़ेने उत्तर दिया कि मा, मैंने टेढ़ा चलना तुमसे ही सीखा है। तुम भी तो टेढ़ी चलती हो । दुनियामें हर एक बच्चा चाहे वह किसीका हो, अपने मातापिताका अनुकरण करता है । वह कहनेकी उतनी परवाह नहीं करता जितनी करते देखनेकी करता है । जैसा माता पिताको करते देखता है वैसा ही आप करने लगता है । जिस माताको क्रोध अधिक आता हैं उसका बच्चा भी क्रोधी होता है। जो माता गालियाँ अधिक देती है उसके बच्चे को भी गालियाँ देनेकी आदत पड़ जाती है । जिस माताको झूठ बोलने की आदत होती है, उसका बच्चा भी झूठा और मायाचारी होता है; परन्तु इसके विपरीत जो माता सभ्य और शिक्षित होती है, सच बोलती है और धर्मानुसार आचरण करती
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