Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 29
________________ सन्तान-सुधार। २२१ है उसका बच्चा भी वैसा ही होता है। परंतु काम यों करो। जो कुछ उन्हें बताओ वह आजकलकी मूर्खा स्त्रियाँ अवगुणोंको नहीं देखतीं उनसे कराकर छोड़ो। जैसे कन्याओंको सिलाईऔर न दूसरोंके बतानेसे उनको मानती हैं। उलटी के केवल नियम बतला देना काफी नहीं , रुष्ट होती हैं और मुंह बनाकर आखोंमें पानी भर उनसे सिलाईका काम कराकर छोड़ना चाहिए । लाती हैं । न उन्हें अपने सुधारनेका ख्याल होता केवल नियमोंके बता देनेसे बच्चोंको कोई लाभ है और न बालककी भलाई बुराईका । उन्हें नहीं होता। नियमोंको वे शीघ्र भूल जाते हैं । केवल लड़ना झगड़ना और रोना चिल्लाना आता जिस कामके नियम उनको बताये जायें उसे है। एक पुरानी कहावत है कि सबसे अधिक बारबार उनसे कराना चाहिए, यहाँ तक कि वह विनय बालकोंकी करनी चाहिए। माता पिताको उनका स्वभाव हो जाय । प्रायः माता बालकोंसदा इस बातका ख्याल रखना चाहिए कि जो को यह तो बता दिया करती है कि घरकी काम वे बच्चोंके सामने करते हैं, वह कैसा है। चीजें अपनी अपनी जगह पर रक्खा करो; जो मनुष्य बच्चेके सामने कोई बुरा काम करता परंतु उससे कोई लाभ नहीं होता जबतक कि है वह एक ही समय दो बुरे काम करता है, वह स्वयं उनसे चीजोंको नियत स्थान पर न अर्थात् एक तो वह स्वयं बुरा करता है और रखवावे और स्वयं न रक्खे । अतएव कहनेके : दूसरे बच्चेको बुरा करना सिखलाता है। बच्चोंको साथ साथ करके भी दिखाना चाहिए । माताका अच्छी बातोंकी शिक्षा देना और स्वयं बुरा केवल इतना बता देना काफ़ी नहीं कि बेटा, नमूना बनकर दिखलाना ऐसा ही है जैसा कि रास्ता वह है; किंतु उसे चाहिए कि वह यह उनको मुँहसे तो यह बताना कि सीधा रास्ता कहे कि 'बेटा, आओ मैं तुम्हें साथ ले यह है, परंतु हाथ पकड़कर बुरे रास्ते पर डाल चलती हूँ।' देना । जिस बातकी शिक्षा दी जाती है यदि असलमें जिस दिनसे बच्चा पैदा होता है उसका नमूना बनकर न दिखलाया जाय तो उसी दिनसे उसकी शिक्षा शुरू हो जाती है। वह शिक्षा व्यर्थ है; उससे कोई लाभ नहीं है- थोडे ही दिनों में वह माताकी प्रेम भरी दृष्टिके उलटा आने समय और श्रमको खोना है और उत्तरमें मुस्कराने और क्रोधभरी दृष्टिसे आखोंमें बच्चेको बिगड़ना है । कारण कि जब बच्चा स्वयं आँसू भरने लगता है। उसका ज्ञान दिनों दिन तुमको शिक्षाके विरुद्ध चलते देखता है तो वह बढ़ता जाता है। धीरे धीरे वह जिस बातको कदापि शिक्षाको नहीं मान सकता और जो तुम सुनता है या देखता है, करने लगता है। यही करते हो उसे ही करने लगता है । बच्चों में देखने कारण है कि इंग्लैंडमें पैदा हुआ बच्चा अंगरेजी और अनुकरण करनेकी विलक्षण शक्ति होती है। बोलता है और हिंदुस्तानमें पैदा हुआ बच्चा वे झट ताड़ जाते हैं कि उनके माता पिता कैसे हिंदुस्तानी बोलता है। बच्चा जो कुछ सीखता आदमी है और जैसे वे होते हैं वैसे ही आप है वह सब थोड़ी उमरमें ही सीखता है । जिस बन जाते हैं । अतएव जैसा तुम बच्चोंको बनाना भाषाको वह छुटपनमें माता पिता और भाई चाहले हो पहले वैसे स्वयं बनो, बच्चा स्वयं बहिनोंसे सहजमें ही निःशंक होकर सीख लेता वैसा बन जायगा। हैं उसीके सीखनेमें दूसरे देशके बच्चेको बड़े बच्चोंके शिक्षणसे केवल इतना ही तात्पर्य नहीं होकर वर्षों लगते हैं और फिर भी उसमें इतनी है कि उनको बता दिया जाय कि अमुक जल्दी और साफ नहीं बोल सकता जितनी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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