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अङ्क ५-६]
योग-चिकित्सा।
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में लाना सीखोगे तो बात-की-बातमें पूर्ण स्वाधीन जब देहसे जुदा हो जाता है तब देहमें प्राणकी तथा सुखी हो जाओगे।
आवश्यकता नहीं रहती और वह शीघ्र ही विश्ववह शक्ति कौनसी है ? के सर्वव्यापी प्रागसमूहमें मिल जाता है । प्राण - तुम पूछोगे कि वह शक्ति कौनसी है ? कैसी का अंकुश दूर होते ही शरीरके सारे जीवनतत्त्व है ? हम उसे किस प्रकार पहिचान सकते पृथक पृथक हो जाते हैं और कुछ कालमें पंच हैं ? उसे किस प्रकार अधिकारमें लाकर उससे महाभूतमें मिलकर नवीन शरीरकी रचना करने में अपनी इच्छानुसार काम ले सकते हैं ? वह लग जाते हैं। शक्ति स्वतः तुम्हारे शरीरमें स्थिर है और उसके अभी हम कह चुके हैं कि प्राण एक महान् द्वारा ही तुम्हारे शरीरके सब कार्य होते हैं, परंतु शक्ति है । उसे कोई कोई विद्युत शक्ति कहते तम उसे पहिचानते नहीं हो। अपने शरीरकी जाँच हैं। कोई कोई उसे और सुधारकर Human करो। वह किन पदार्थो का बना हुआ है ? तुम Electricity अर्थात् ' मानुषी विद्युत् शक्ति कहोगे कि अस्थि, रुधिर त्वचा और मांसका। कहते हैं। कितने ही विद्वान उसे Magnetism यह ठीक है, परंत इससे अधिक गहरा विचार कगे, अथवा आकर्षणशक्ति भी कहते हैं । परंतु हमारी अधिकाधिक बारीकीसे देखो और सूक्ष्मदर्शक समझमें उसका वास्तविक नाम ‘क्रियाशक्ति यंत्रकी सहायता लो। इस यंत्र द्वारा रुधिरकी है । उसको चाहे जिस नामसे पुकारो या कहो, एक बिन्द्रकी अथवा वीर्यके एक छोटेसे छोटे परंतु यह तो सभी स्वीकार करेंगे कि वह एक कणकी परीक्षा करो । तुमको दिखाई देगा कि महान शक्ति है । मनुष्य, प्राणी और पदार्थ उसमें असंख्य जीवनतत्त्व हैं । रुधिर और मात्र में वह गुप्त रीतिसे स्थित है। संक्षेपमें कहें वीर्य्य केवल जड पदार्थ नहीं हैं, ये केवल रास' तो बड़ पवन, पानी और सूर्यकिरण आदि सबमें यनिक पदार्थोके संयोगसे ही नहीं बने है, वरन् है । सम्पूर्ण विश्व उससे व्याप्त है । विश्वमें इस इनमें चेतन भी है । प्रत्येक रुधिरके अणमें शक्तिका अटूट खजाना है। यह सब शक्ति चेतन है। इस प्रकार तुम्हारा सारा शरीर जीव- तुम्हारी निजकी है । तुम इस शक्तिको प्रकृतिसे नतत्त्वोंसे बना हुआ है। ये जीवन तत्त्व ये सब जितनी खींच सको उतनी खींचो और अपनेको परमाण पृथक् पृथक नहीं हैं, इन असंख्य तत्त्वोंकी बलवान् तथा तेजस्वी बनाओ । वास्तवमें तुम एकता होनेसे ही एक जीवित शरीर बनता है । सब समृद्धियोंके मालिक हो, दरिद्री तथा इसी प्रकार प्राणी वनस्पति और जिनको हम दुःखी तो तुम अपने हाथसे बनते हो। सामान्य भाषामें जड़ पदार्थ कहते हैं उन सामान्य देनगियाँ। सबमें ये जीवनतत्त्व संकलित रहते हैं । इन सब तुम निश्चयपूर्वक मानते हो कि प्रकृति बड़ी तत्त्वोंको नियममें रखनेवाली एक चमत्कारिक ही दयालु है । उसने मनुष्यके यावत आवश्यकीय शक्ति प्राणी मात्र और पदार्थ मात्रमें रहती है पदार्थ जगतमें जहाँ तहाँ भर रखे हैं। जिसके और वह प्राण है । इसी प्राणके बलसे सब विना थोड़े ही घंटोंमें मनुष्यका गला सूख जाता जीवनतत्त्व नियंत्रित और संगठित . रहते हैं। है और जिसके विना असह्य वेदना होती है, प्राणका अर्थ आत्मा या वायु नहीं करना चाहिए। ऐसा परमावश्यक पदार्थ जल कहाँ नहीं
आत्मा तुम्हारा मूल स्वरूप है और वह प्राण मिलता ? सहाराके सूखे तथा निर्जन मरुस्थलमें । तथा दूसरी सर्व शक्तियोंका स्वामी है। आत्मा भी उसने हरित भूमि ( Oasis ) की रचना की
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