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अङ्क ५-६ ]
वर्ण और जाति-विचार |
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इस समय के ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य और शूद्रोंको प्रच्युत्यार्थनिवासात्स्याद्धर्मः प्रत्यंतासिषु ॥ १२ ॥ जादिनाथ भगवान के समय के ब्राह्मण क्षत्री वैश्य आदिपुराण, पर्व ४१ ॥ और शूद्रोंकी सन्तान समझना बिलकुल ही जब- अत: जब श्रीभगवानका ही ऐसा वाक्य है। दस्ती और सत्यता के विरुद्ध है । श्रीआदिनाथ तब धर्मकी बाबत तो इस बातके कहनेका किसीभगवानने भरत महाराजके स्वप्नोंका फल बत को अधिकार ही नहीं है कि जो लोग घटिया वर्णलाते हुए क्षत्रियोंकी बाबत तो स्पष्ट शब्दोंही में के हैं या म्लेच्छ कहे जाते हैं वे अमुक धर्म नहीं कह दिया है कि पंचमकालमें प्राचीन क्षत्रियोंके पाल सकते, या अमुक धर्मक्रिया नहीं कर वंशका नाश हो जायगा । अर्थात् प्राचीन क्षत्रि- सकते हैं। हाँ, यदि वे लोग आर्यक्षेत्र के उत्तम योंकी संतान में कोई न रहेगा । यथा -- - वर्णवालों पर यह आक्षेप करने लगें कि आदिनाथ -करीद्रकंधरारूढशाखामृग विलोकनात् । भगवान के वचनानुसार तुम सर्वथा ही धर्मपालन आदिक्षत्रान्वयोच्छित्तौ क्षमां पास्येत्य कुलीनकाशा६॥ नहीं कर सकते, या मुनि आदिका उत्कृष्ट धर्म -आदिपुराण, पर्व ४१ । पालन नहीं कर सकते, तो शायद कुछ ठिकाने की बात भी हो ।
इससे स्पष्ट है कि इस समय जो क्षत्री हैं वे उन क्षत्रियोंकी सन्तान नहीं हैं, जिनको आदिनाथ भगवान ने बनाया था। ऐसा ही अन्य वर्णोंके विषय में भी समझ लेना चाहिए !
धर्म के सम्बन्ध तो श्रीजादिनाथ भगवानमे कहा ही है कि पञ्चम कालमें ब्राह्मणलोग धर्म के विरोधी हो जायँगे, हिंसा करने और मांस खाने को अच्छा समझेंगे, और हिंसामय धर्मका प्रचार करेंगे । यथा:
ततः कलियुगेऽभ्य जातिवादावलेपतः ।
भ्रष्टाचारः प्रपत्स्यते सन्मार्गप्रत्यनीकताम् ॥ ४७ ॥ सत्वोपघातनिरता मधुमांसाशनप्रियाः । प्रवृत्तिलक्षणं धर्मे घोषयिष्यत्यधार्मिकाः ॥ ५१ ॥ आदिपुराण, पर्व ४१ ॥ ब्राह्मणोंकी तो पंचम कालमें यह दशा हुई, रहे क्षत्री, सो वे आजकल लगभग सभी मांसा - हारी हैं । इस प्रकार जब सबसे उत्तम वर्णोंका यह हाल है, तब धर्मका आधार घटिया लोगों पर ही रह गया। ऐसा ही श्री आदिनाथ भगवानने भरतके स्वनोंका फल बताते हुए कहा है कि जैनधर्म आर्यक्षेत्र में न रहकर म्लेच्छ आदि आसन पासके देशवासियोंहीमें रहेगा । यथा-शुष्कमध्यतडागस्य पर्यंतेंऽबुस्थितीक्षणात् ।
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अब रहा रोटी और बेटीका सवाल, सो जब कि आदिनाथ भगवान के वाक्यके अनुसार पञ्चम कालमें जो ब्राह्मण कहलायेंगे वे जैनधर्मके विरोधी होंगे और जो क्षत्री कहलायेंगे वे उन लोगोंकी सन्तानसे नहीं होंगे, जिनको आदिनाथ भगवानने क्षत्री बनाया था, तब वैश्य और शूद्र बेचारोंकी तो कहाँ खैर है ! वे भी अनेक कार - गोसे जिनका वर्णन ऊपर किया गया है उन लोगों की सन्तान से नहीं होंगे, जिनको आदिनाथ भगवान ने वैश्य और शूद्र बनाया था । तब रोटी और बेटी व्यवहारके वास्ते भी प्राचीन वर्ण और जातिकी दुहाई देना व्यर्थ ही है । इस समय जब कि सभी वर्णके लोग सभी वर्णोंका पेशा करते हैं, अर्थात् जब कि पूर्णरूप से वर्णसंकरता छा रही है और जब कि लोग पेशा कुछ करते हैं और वर्ण उनका कुछ और कहा जाता है, अर्थात् जब कि वर्णका पेशेसे कुछ सम्बन्ध नहीं रहा है, तब यह बात विचार करनी बहुत ही जरूरी है कि रोटीबेटी व्यवहार किस प्रकार रक्खा जावे। आज कल इस विषय में जैनजातिका वर्ताव हिंदुस्तानके प्रत्येक प्रान्तमें एक ही प्रकारका नहीं है । क्यों कि इस विषयमें
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