Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 05 06 07
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 22
________________ २१४ जैनाहितैषी भाग १३ लाम करना अपना अहो भाग्य समझते हैं । ऐसी और कमसे कम जन्मसे तो वर्णव्यवस्था कदा. अवस्थामें यदि उच्च वर्णवाले अधीन पुरुषकी चित् भी न रही होगी। इस कारण यह कदःकन्याको घटिया वर्णवाला उसका अफ़सर स्व. चित् भी नहीं कहा जा सकता कि आदिनाथ कार कर ले तो कन्यावालेको अपना अहो भाग्य भगवान्द या भरत महाराजने जो वर्ग बनाये थे ही समझना चाहिए । दृष्टान्तरूप एक ब्राह्मण उनहीकी सन्तानसे अबतक ब्राह्मण, क्षत्री, जो किसी करोड़पति सेठके यहाँ रोटी पकाने वैश्य और शूद्र चले आते हैं । अर्थात् जो अब या पानी पिलाने आदिक किसी सेवाके काम• ब्राह्मण हैं वे उन्ही ब्राह्मणोंकी सन्तान है जिनको पर नौकर है और रात दिन सेठजी और सेठा- भरत महाराजने ब्राह्मण बनाया था और इस नीजी और उनके बड़े नौकरोंके झिड़के खाने समयके क्षत्री उन्ही पुरुषोंकी औलाद हैं जिनको और उनकी अनेक प्रकारकी सेवा शुश्रूषा कर. आदिनाथ भगवानने क्षत्री बनाया था। इस पंचम (नेको अपना अहो भाग्य समझ रहा है, उस कालमें जब धर्मका सर्वथा अभाव नहीं हुआ है; फिर ब्राह्मणकी कन्याको यदि सेठका पुत्र स्वीकार भी इतनी गड़बड़ अवश्य हो गई है कि ब्राह्मणा, • कर ले तो यह ही समझना सत्य है कि उस क्षत्री, वैश्य और शूद्र भी पुलिसके सिपाही ब्राह्मणने अपनी कन्या अपनेरेले बढ़ियाको बनकर या फौजमें भरती होकर क्षत्रीका काम करने ही दी। लगे हैं, ब्राह्मण क्षत्री और रूद्र खेती, पशुपालन विस्तारभयसे हम अपने लेखको यहीं पर और दूकानदारीका काम करके वेश्यक ऐका समाप्त करते हैं और वर्ण और जातिका पेशेस करने लगे है, बाह्मणत्री वैश्य शिल्पकारी और सम्बन्ध' और 'वर्ण और जातिका जन्म सेवा करके शूद्रका काम करने लगे हैं, और और कर्मसे सम्बन्ध । ये दोनों विषय एक स्वतंत्र स्त्री वेश्य और शूद्र पढ़ने पढ़ाने और उपदेश लेखके वास्ते छोड़ते हैं, परन्तु यहाँपर इतनः आद्रिकका कार्य करके ब्राह्मणका पेश! करने कह देना जरूरी समझते हैं कि चौथे कालमें लगे हैं। इस कालमें राजाओंने वर्णकी रक्षा बीच बीच में बात बहुत दिनोंतक धर्मका करनी छोड़ दी है और मनुष्यमात्रको चारों बिलकुल अभाऊ होता रहा है । उत्तरपुराणमें वर्गों का पेशा करनेकी स्वतंत्रता दे दी है । इस लिखा है कि श्रीशीतलनाथ भगवानके जन्मके कारण वर्तमान समयमें पूर्णरूपसे वर्णसंकरता हो एक पूर्व कम पाव पल्य पहलेसे और श्रीश्रेयांस- गई है और केवल वर्णसंकरता ही नहीं हुई है, नाथ भगवानके जन्मके अस्सी लाख वर्ष कम. बल्कि वर्णपरिवर्तन भी होगया है जैसा कि आधे पल्य पहलेसे और श्रीवासुपूज्य भगवानके अग्रवाल-जो राजा उग्रसेनकी सन्तान कहलाते जन्मके ७२ लाख वर्ष कम पौन पल्य पहलेसे है-अब क्षत्रीसे वैश्य होगये हैं। अतः जब कि धर्मधर्ममार्ग बन्द हो गया था। इतने इतने लम्बे मार्गका सर्वथा अभाव न होने पर भी और तीर्थसमयके वास्ते धर्ममार्ग बन्द रहनेकी अवस्थामें कर भगवानके होनेको केवल ढाई हजार वर्ष यह कभी सम्भव नहीं हो सकता है कि वह वर्ण- बीतने पर भी इतना उलट-पलट होगया है तव व्यवस्था कायम रही हो, जिसकी रक्षाके वास्ते श्रीशीतलनाथ आदि तीर्थकरोके जन्मसे पहले भगवान आदिनाथको राज्यका पहरा बिठाना अर्बो और संखों वर्षोंसे भी ज्यादा समयतक पड़ा था। इन अंतरालके समयोंमें तो अवश्य धर्मका सर्वथा अभाव रहने की अवस्थामें क्या घोर अन्धकार और पूर्ण गड़बड़ हो गई होगी कुछ उलट पलट नहीं हुआ होगा ? इस कारण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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