Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 03 Author(s): Nathuram Premi Publisher: Jain Granthratna Karyalay View full book textPage 9
________________ विविध प्रसंग | १३३ । यह ग्रन्थ प्राकृत भाषामें है और इसमें पउमचरिय - ( पद्म चरित). या रामचन्द्रजीका चरित वर्णित है । ग्रन्थ बड़ा है । ११८ उद्देश या अध्यायोंमें विभक्त है । पत्राकार ३३६ पृष्ठों में छपा है । कागज और छपाई बहुत अच्छी है । शुद्धताके विषय में इतना ही कहना काफी होगा कि इसका संशोधन जर्मनीके सुप्रसिद्ध विद्वान् डाक्टर हर्मन जैकोबीके हाथसे हुआ है । युद्ध शुरू हो जानेके कारण जैकोबी महाश्यकी लिखी हुई भूमिका इसके साथ सम्मिलित नहीं हो सकी है, इस लिए इस ग्रन्थके सम्बन्धकी विशेष ऐतिहासिक और तात्त्विक बातें जाननेके एक अच्छे मार्गसे हम कुछ दूर जा पड़े हैं। तो भी आशा की जाती है कि जब तक जैकोबी महाशयकी भूमिका प्रकाशित नहीं होती है तब तक हमारे देशी विद्वान् ही इस ग्रन्थका अध्ययन मनन करके इसके विषयमें कुछ अधिक प्रकाश डालनेका प्रयत्न करेंगे । इस ग्रन्थके रचयिताका नाम विमलसूरि या विमलाचार्य है । ग्रन्थके अन्तमें वे अपना परिचय इस प्रकार देते हैं: राहू नामायरिओ ससमय परसमयगहियसब्भाओ । विजओ य तस्स सीसो नाइलकुलवंसनंदियरो ॥ ११७ ॥ सीसेण तस्स रइयं राहवचरियं तु सूरिविमलेणं । सोऊणं पुचगए नारायणसीरिचरियाई ॥ ११८ ॥ जेहि सुयं ववगयमच्छरोहिं तब्भत्तिभावियमणेहिं । ताणं विउ बोहिं विमलं चरियं सुपुरिसाणं ॥ ११९ ॥ इइ नाइलवंसदिणयर राहूसूरिपसीसेण महप्पेण पुव्वहरेण विमलायरिएण विरइयं सम्मत्तं पउमचरियं ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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