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तुम्हारी बहादुरी निहित है।
___ यदि तूने धर्मयुक्त युद्ध नहीं किया, तो अपकीर्ति का पात्र बनेगा। शत्रु तेरे सामर्थ्य की खिल्ली उड़ायेंगे । यदि तू युद्ध में मारा भी गया, तो धर्मयुद्ध के लिए बलिदान होने का कारण तू स्वर्ग का सम्राट होगा और जीत गया, तो पृथ्वी का राज्य तुम्हारे लिए होगा। जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुःख को समान समझकर इस जीवन-युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। आसक्ति को त्यागकर सिद्धि-असिद्धि में समत्व लाओ। समत्वयोग ही बुद्धियोग है, ज्ञानयोग है।
तुम्हारी अंतरात्मा तुम्हें भीतर आने का आह्वान कर रही है, तुम्हें निमंत्रण दे रही है । भीतर बैठा हुआ परमात्मा तुम्हें प्यार-दुलार करने को आतुर है, वह तुम्हें दर्शन देना चाहता है । अगर परमात्मा का दर्शन पाना है, तो एक कृपा करो कि अपने अन्तःकरण को निर्मल बनाओ । ठीक वैसी ही निर्मलता आनी चाहिये, जैसी मन्दिर जाने से पहले स्नान के बाद आती है। इतना ही निर्मल, इतना ही पावन अपने चित्त को, अपने मन को, अपने अन्तःकरण को करो, ताकि उस निर्मलता के मन्दिर में, उस मन-मन्दिर में परमपिता परमात्मा आपको दर्शन दे सकें, जिससे आपकी अन्तरात्मा की आँखें तृप्त, सन्तुष्ट और आनन्दमग्न हो सकें। ____ अपनी दृष्टि और बुद्धि को विचलित मत करो । स्थिरबुद्धि के स्वामी बनो, स्थितप्रज्ञ बनो । तम्हें बड़े ही धैर्य से यह जीवन-युद्ध लड़ना है । विषयों का चिन्तन करके या उनके प्रति आसक्त होकर नहीं । कामनाओं को त्यागो, ममत्वरहित बनो, मैं और मेरे का भाव हटाओ, चित्त की शान्ति प्राप्त करो और चुनौती का सामना करो। मैं, मेरे आशीष तुम्हारे साथ हैं।
22 | जागो मेरे पार्थ
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