________________
कमल भी पैदा होता है । कीड़ा कीचड़ में पैदा होकर उसमें धंसता जाता है और कमल कीचड़ में पैदा होकर उससे ऊपर उठ जाता है । उस ऊपर उठने का नाम ही परमात्मा के साथ संबंधों को स्थापित करना है, आकाश का हो जाना है ।
भगवान कहते हैं अपने आपको निर्लिप्त करो, मुक्त करो, ठीक ऐसे ही जैसे आकाश है। चाहे बदली आये या चांद-सितारे विहार करें या वायुयान उड़े, मगर आकाश फिर भी निर्लिप्त, निस्पृह । सब का दृष्टा भर । ऐसे ही जीवन को ना होता है, यही एक आध्यात्मिक, एक सौम्य, एक व्यावहारिक जीवन जीने की सहज-सरल-सौम्य प्रक्रिया है ।
162 | जागो मेरे पार्थ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org