Book Title: Jago Mere Parth
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 228
________________ I ने कहा- मुझे कुछ और चाहिये । पादरी झल्ला उठा । उसने कहा - प्रभु, मैं नहीं जानता कि अब मैं आपके पुण्य चरणों में क्या समर्पित करूं ? जब मैंने अपना तन-मन-जीवन ही आपको समर्पित कर दिया है, तो मुझे नहीं मालूम कि अब मेरे पास कुछ बचता है आपको समर्पित करने के लिए, आपके श्रीचरणों में चढ़ाने के लिए । जीसस ने कहा- मैं मेरे जन्मोत्सव पर तुमसे वे पाप मांगता हूँ जिनको अज्ञान में तुमने किया है, ताकि तुम पाप मुक्त हो सको । तुम आओ मेरे पास । मैं तुम्हें तुम्हारे समस्त पापों से मुक्त करने को तैयार हूँ । तुम अगर चढ़ाना ही चाहते हो, तो केवल पाप चढ़ा दो, वे पाप, पाप नहीं रहेंगे, स्वतः ही पुण्य में रूपान्तरित हो जायेंगे, तुम पाप मुक्त हो जाओगे । 1 कृष्ण भी जीसस की तरह यही बात कहते हैं कि तुम अपने सारे पापों को मुझे समर्पित कर पापमुक्त हो जाओ। तुम्हीं तुम्हारे पापों को समर्पित नहीं करते, बचा-बचाकर रखते हो। तुम भूल ही जाओ कि तुम ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य थे ब्राह्मणत्व, क्षत्रियत्व या वैश्यत्व के ऊँचे-कुल का घमंड या अहंकार मत पालो, क्योंकि ब्राह्मणों को भी बुरे कर्म करते हुए देखा गया है और शूद्रों को भी अच्छे कर्म करते हुए पाया गया है। जन्म से अगर अपने आपको ब्राह्मण मान बैठे और वही अभिमान अगर बनाये रखा, तो ब्राह्मणत्व अर्जित नहीं होगा । जन्म से कोई भी व्यक्ति ब्राह्मण, क्षत्रिय या क्षुद्र नहीं होता । जन्म से मनुष्य केवल मनुष्य होता है । जैसे-जैसे मनुष्य का विकास होता है, हमारा विकास ब्राह्मणत्व के गुणों की तरफ होता है या क्षत्रियत्व के गुणों की तरफ होता है । धर्म का संबंध जन्म, पैदाइश या खून से नहीं होता । धर्म का संबंध तो उस अंधकार की मृत्यु से होता है, जिस अंधकार को हम अपने भीतर समाये हुए हैं। जिस दिन अंधकार की मृत्यु होगी, उसी दिन समझ लीजिएगा कि जीवन में धर्म का उदय हुआ है । धर्म जीने के लिए है, धर्म को जीओ । अगर हिन्दू कुल में पैदा हुए और व्यसन करते हो, तो क्या आपको हिन्दू कहलाते हुए शर्म नहीं आती ? राम, जो मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये, क्या उनकी मर्यादाएँ हमारे जीवन में किलकारियाँ भर रही हैं धर्म की वो ऊँची-ऊँची बातें कर लेते हो, मगर अपने आपको व्यसनों में जकड़े रखते हो । अगर एक इंसान अपने आपको व्यसनों से मुक्त नहीं कर पाया, तो मैं नहीं जानता कि वह अपने आपको जैन या हिन्दू कहलाने का हक़दार है । गुणवत्ता के नाम पर हमारे पास क्या है ? केवल गीता को पढ़ लेने भर से जीवन का उद्धार नहीं होने वाला है । महाभारत के उस विशाल प्रांगण में अर्जुन के साथ बूँद चले सागर की ओर | 219 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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