Book Title: Jago Mere Parth
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

Previous | Next

Page 229
________________ बहुत सारे लोगों ने गीता का संदेश सुना होगा, मगर अर्जुन कोई एकाध ही बन पाया । राम की सेवा तो सभी लोगों ने की होगी, मगर पवनपुत्र हनुमान कोई ही हो पाया। इस धरती पर हिन्दुओं की संख्या करोड़ों में होगी, मगर मैं कहँगा कि 'हिन्द' तो विरले ही होते होंगे, बाकी सब तो बस ठीक है। मंदिर में जाकर 'पुण्य' कर आते हैं और फिर जैसे थे वैसे ही दोहराते रहते हैं । आखिर, पाप की नींव पर पुण्य के शिखर कैसे खड़े किये जा सकते हैं। पाप चाहे छिपकर करें या खुले आम, वह पाप अपना असर दिखाएगा ही। आप सबसे मुझे प्रेम है । आप अगर सही तौर पर अपने आपको मर्यादा पुरुषोत्तम राम का और जय जिनेन्द्र महावीर का अनुयायी समझते हैं, तो आज के बाद हमारे लिए किसी भी तरह के व्यसन का सेवन जीवन का सबसे बड़ा पाप होगा । क्या हिन्दू, क्या जैन, मैं सब लोगों को यह आह्वान कर रहा हूँ। ___ गीता को हमने अठारह दिनों तक सुना है । गीता को अपने जीवन में जीने के लिए, शुभारम्भ करने के लिए अपने जीवन को व्यसन-मुक्त बनाओ । भीतर के महाभारत को जीतो। अपने हृदय को सहृदय बनाओ। निर्मल अनासक्त बनाओ। माना आप में से कई बूढ़े हो चुके हैं, संन्यास नहीं ले सकते, मगर संसार में रहकर निर्लिप्त तो जी सकते हो । माना तुम करोड़ों का दान नहीं कर सकते, मगर अहोभाव के गीत तो गुनगुना सकते हो । अगर अपनी मृत्यु से पहले व्यसनों की मृत्यु कर सकें, इनको हटा सकें, तो यह विशुद्ध रूप से धर्म का आचरण होगा। अगर तुम जीसस के अनुयायी हो और तुम क्रॉस पर नहीं लटक सकते, तो कम-से-कम किसी के दो कड़वे शब्दों को तो सहन कर सकते हो । अगर मन्दिर में जाकर कृष्ण-कन्हैया को माखन-मिश्री न चटा पाये तो न सही, मगर अपने घर बाल-गोपालों को तो चांटा मत मारो, उन्हें प्यार करो। अगर ये दोनों क्रियाएँ साथ-साथ होंगी, तो मुझे नहीं लगता कि आप धर्म को सही रूप में समझ पाये हैं । छोटे बच्चों को मारने का हक आपको नहीं है और न ही उनके सामने सिगरेट पीने का अधिकार ही है, क्योंकि जैसे हम होंगे, वैसी ही हमारी पीढ़ी होगी, जैसे हम स्वस्थ होंगे, वैसे ही आगे आने वाली पीढ़ियाँ होंगी। सोचें, आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए हम क्या छोड़कर जा रहे हैं? अगर हमने वृक्षों से फलों को तोड़ लिया है और इन वृक्षों को न सींचा, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए हम सूखा दरख्त और कांटे ही छोड़कर जायेंगे। 220 | जागो मेरे पार्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 227 228 229 230 231 232 233 234