Book Title: Jago Mere Parth
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 227
________________ वर-वधु को आशीर्वाद देकर चले आये। उन सज्जन ने बताया कि वहाँ मैंने इतनी स्वच्छता देखी कि उतनी स्वच्छता आमतौर पर किसी धर्मस्थान में भी नहीं देख पाता। आदमी को अपना दृष्टिकोण महान् बनाना चाहिये । मनुष्य न तो पापी होता है और न पुण्यात्मा होता है । तुम्हें अगर घृणा करनी है, तो पाप से घृणा करो। यह तो वक्त का तकाज़ा है कि वही पाप करवाता है, वही पुण्य करवाता है । जब कृष्ण कहते हैं कि यहाँ जो कुछ हो रहा है, वह सब कुछ मैं ही करवा रहा हूँ, तो फिर कौन छूत और कौन अछूत हुआ? क्या पाप और क्या पुण्य हुआ, जब सब कुछ उसी की बदौलत है। __मुझे याद है कि जेरुसलम में भगवान जीसस का जन्मोत्सव मनाने की तैयारियाँ चल रही थीं। चूंकि ईसाइयों का यही एकमात्र विशाल आयोजन होता है, इसीलिए सभी धर्मानुयायी बड़े उत्साह से तैयारियों में जुटे थे। जीसस के जन्मदिन के एक दिन पहले की बात है । जेरुसलम के मुख्य पादरी को रात में सपना आया। सपने में उसने जीसस को देखा । जीसस उससे कह रहे थे कि पादरी, तुम मेरे जन्मोत्सव की तैयारियाँ कर रहे हो । कल मेरा जन्मोत्सव है। मैं मेरे जन्मोत्सव पर तुमसे कुछ माँगने के लिये आया हूँ। पादरी ने जब अपनी आँखों के सामने भगवान को खड़े पाया, तो विमुग्ध हो उठा। कहने लगा कि धन्य भाग मेरे, जो आप पधारे । आप जो कुछ कहें, वह मैं अर्पित करने को तैयार हूँ । मैंने आपके लिए ही सारी मिठाइयाँ बनाई हैं, मोमबत्तियाँ सजवाई हैं, आप इन्हें स्वीकार करें । जीसस ने कहा-मुझे यह सब नहीं चाहिये । मुझे तो कुछ और चाहिये । पादरी ने कहा-प्रभु मेरा यह शरीर आपको समर्पित है । जीसस ने कहा-मुझे यह नहीं चाहिये। पादरी ने कहा-मैं अपना मन, अपना हृदय, अपनी भक्ति, अपनी श्रद्धा आपको समर्पित करता हूँ। जीसस ने कहा-मुझे और भी कुछ चाहिये, इतने मात्र से मेरी तृप्ति नहीं हो पायेगी । पादरी ने कहा-मैं अपने पुण्य आपको समर्पित करता हूँ । अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करता हूँ। मैं आपकी शरण में आता हूँ। पादरी ने मन-ही-मन सोचा अब भगवान क्या माँग सकते हैं, क्योंकि मैंने अब सब कुछ ही तो उनको सौंप दिया है । पादरी की बात सुनने के बाद जीसस 218 | जागो मेरे पार्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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