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केवल घी की आहूतियों के ही यज्ञ करते रहे, तो ऐसे यज्ञ तो हज़ारों-हज़ारों वर्षों से होते रहे हैं, चाहे वे अश्वमेध-यज्ञ हो जा वाजपेयी-यज्ञ । मानव को प्रेम की शिक्षा दो, उसे ध्यान और योग की शिक्षा दो, कला और विज्ञान की शिक्षा दो। ये शिक्षाएँ ही जीवन का यज्ञ बन जाये, धर्म की आराधना हो जाये । यज्ञों के प्रकार बताते हुए कृष्ण कहते हैं कि अगर व्यक्ति केवल परमात्मा की आराधना के लिए ही यज्ञ करता है, तो वह सात्विक यज्ञ है। वहीं अगर दंभाचरण या फल की आकांक्षा के लिए यज्ञ आयोजित करता है, तो वह यज्ञ 'राजसी' यज्ञ है। इसके अलावा अगर तुमने किसी को अन्नदान न किया, अपने द्वार पर आये किसी याचक को खाली हाथ लौटा दिया, किसी मंत्र, किसी शास्त्र-विधि का उपयोग न किया, तो तुम्हारे लिए 'तामसी' यज्ञ होगा।
महाभारत का प्रसंग है । अश्वमेध यज्ञ चल रहा था, बड़े-बड़े ब्राह्मणों और ऋषियों को दान-दक्षिणा दी जा रही थी। कहते हैं कि उस यज्ञ में बड़े-बड़े देव आये, यहाँ तक कि देवराज इंद्र तक भी उपस्थित हए । स्वयं भगवान कृष्ण तक वहाँ साक्षात थे। दान देने का उपक्रम चल रहा था । अश्वमेध यज्ञ की पूर्णाहूति की पावन वेला थी। इतने में ही सबने देखा कि एक गिलहरी उस यज्ञ-मंडप पर पहँची और अपने शरीर को उलट-पुलट करने लगी। लोग बड़े ताज्जुब से उस गिलहरी को देख रहे थे। और भी ज्यादा आश्चर्य तो इस बात का था कि उस गिलहरी का आधा शरीर सोने का था और आधा शरीर वैसा ही था, जैसे कि आम गिलहरियों का होता है । युधिष्ठिर के लिए भी यह बात आश्चर्यचकित करने वाली थी। ऐसी गिलहरी पहले कभी नहीं देखी गई। एक बार तो दान-दक्षिणा, मंत्रोच्चार और देवों के आह्वान का उपक्रम ठहर ही गया।
यधिष्ठिर ने यज्ञ को बीच में रोककर गिलहरी को संबोधित करते हए पूछा-ओ गिलहरी ! मेरे मन में दो शंकाएँ हैं । पहली शंका तो यह है कि तुम्हारा आधा शरीर सोने का कैसे है और दूसरी शंका यह है कि तुम यहाँ यज्ञ-मंडप में आकर अपने शरीर को लोट-पोट क्यों कर रही हो? गिलहरी ने युधिष्ठिर की तरफ़ मुख़ातिब होकर कहा-युधिष्ठिर, तुम्हारा प्रश्न बहुत सार्थक है। बात दरअसल यह है कि तुम्हारे इसी यज्ञ-स्थल से कोई दस कोस दूर एक गरीब ब्राह्मण तीन दिन से भूखा था। उसने जैसे-तैसे कर रोटियों का इंतजाम किया। वह भूखा, उसकी पत्नी भूखी, उसके बच्चे भूखे । रात की वेला हो चुकी थी।
206 | जागो मेरे पार्थ
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