Book Title: Jago Mere Parth
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 201
________________ की लौ का स्वभाव है कि वह हमेशा ऊपर की ओर उठती है । लौ ही शायद वह चीज है, जिस पर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का असर न पड़ता हो । चेतना की तुलना, उसके संतुलन की तुलना हमेशा दीये की लौ के साथ की जाती है । जैसे लौ ऊपर की ओर उठती है, ऐसे ही चेतना भी हमेशा ऊपर की ओर उठती है, बशर्ते व्यक्ति अपने आपको आसुरी प्रकृति से बचाकर रखे। ऊपर उठो, ऊपर उठो। क्योंकि तुम इन्सान हो; परमात्मा के प्राण हो। तुम गगन से और भी ऊपर उठो, ऊपर उठो। वृत्ति पाशव छोड़ दो; वेग को तुम मोड़ दो। हे मनु के वंश-धर, ऊपर उठो, ऊपर उठो। तुम चढ़ो दिग्मेरु पर तुम बढ़ो, हो अग्रसर । धूम्र-वर्षा-मेघ से, ऊपर उठो, ऊपर उठो। तुम्हें ऊपर उठने का निमंत्रण है, आह्वान है। अपनी पाशव-वृत्ति से ऊपर उठने का आह्वान । जैसे ज्योति ऊपर उठती है, ज्योति परम ज्योति से तदाकार होती है, ऐसे ही उठना है ऊपर । आसुरी से दैवीय गुणों की ओर बढ़ो । वेग को, जीवन की राहों को विधायक मोड़ दो । गीता दिव्य जीवन का द्वार है । देवत्व की दिशा में कदम उठाने की संप्रेरणा है । और इसके लिए जरूरी है कि आदमी उन द्वारों से बचे, जिन्हें जीवन के नरकद्वार कहा गया है । गीता का आज सूत्र है - त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः । कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्रयं त्यजेत् ॥ 192 | जागो मेरे पार्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234