Book Title: Jago Mere Parth
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

Previous | Next

Page 206
________________ से होंगी, तो क्रोध आयेगा ही, इसलिए महान् आदमी वह है, जो अपनी अपेक्षा आपने आप से रखता है; जो अपनी ज़रूरत अपने आप से रखता है । जो व्यक्ति आने वाले कल की चिंता नहीं करेगा और भूतकाल के बारे में नहीं सोचेगा, वर्तमान में जो भी मिला है, परमात्मा की सौगात समझकर उसको जी जायेगा, वह विचलित और क्रोधित नहीं होगा। क्रोध तो नासमझ लोग करते हैं, क्रोध तो वे करते हैं, जो परिस्थितियों में तदनुसार ढलना और जीना नहीं जानते। __अगर कोई व्यक्ति हमसे मधुर बोल रहा है, तो यह सामान्य बात है, लेकिन अगर किसी ने हमारे साथ कटु व्यवहार किया और हम उसके साथ मधुर व्यवहार बनाये रखते हैं, तो यह हुई कुछ माधुर्य को जीने की बात । सामने वाले ने दो गालियाँ दी और तुमने भी उसे गालियाँ दे दी, तो तुम दोनों एक जैसे हो गये। सामने वाले ने कहा-गधा और तुमने उसे नालायक कह दिया, तो दोनों में फ़र्क ही क्या रहा? तुम समझदार हो, प्रबुद्ध हो, जीवन में माधुर्य को विकसित करो, क्रोध को नहीं। भगवान कहते हैं कि किसी को पीड़ा पहुँचाना हिंसा है, तो क्या क्रोध के दौरान दी गई गाली हिंसा नहीं है? माना कि हमने किसी बकरे को कसाईखाने में जाने से नहीं रोका, मगर किसी को दो कट शब्द भी नहीं कहे, तो यह अहिंसा का स्वस्थ आचरण होगा। जैसे ही हमारे जीवन में क्रोध के क्षण आये, तत्काल अपने आपको उस वातावरण से अलग कर लो। अगर हमारे कारण किसी को क्रोध आता है, तो तत्काल कह दो-सॉरी । क्रोध को शांत करने का सीधा-सा सूत्र दंगा कि अगर खड़े हो, तो बैठ जाओ, अगर बैठे हो, तो लेट जाओ। लेटने पर भी क्रोध नहीं थमता है, तो घंटे-दो-घंटे के लिए अपने आपको वातावरण से अलग कर लो। क्रोध तो आखिर दूध का एक उबाल है । जब तक आग रहेगी, तब तक दूध उबलेगा, उसमें उफ़ान आएगा, लेकिन जब आग ठंडी हो जायेगी तो दूध का उफ़ान भी शांत हो जायेगा। किसी ने कुछ कटु शब्द कह दिये हैं, तो यह मत सोचो कि इसने ये कटु शब्द क्यों कहे । सोच तो यह रखो कि इसने दो कड़वे शब्द ही कहे हैं, दो चांटे तो नहीं मारे; अगर दो चांटे मार ही दे, तो समझ लो कि दो चांटे ही तो मारे हैं, लाठी तो नहीं मारी और लाठी भी मार दे, तो भी बलिहारी समझो कि केवल दो लाठी ही मारी है, जान से तो नहीं मारा। जो आदमी किसी के दो कडवे शब्दों को सहन नहीं कर सकता, वह आदमी अपने कानों में महावीर की तरह कीलें देवत्व की दिशा में दो कदम | 197 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234