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है । जैसे-जैसे मनुष्य के शरीर का विकास होता है, अपने आप हमारे अवचेतन जगत में, सोये हुए मस्तिष्क में उसकी धारा, उसके स्नायु तंतु स्वतः ही जाग्रत होने लग जाते हैं, अनायास, अपने आप। हमारा जन्म माता-पिता के संयोग से हुआ
और जब हमारा शरीर विकसित होगा, तो हमारे अंतःकरण में अपने माता-पिता के सांयोगिक भाव पनपने लग जायेंगे । यह शरीर का स्वभाव है, मनुष्य की प्रकृति है। यह आसुरी प्रकृति अपने आप जन्म-जन्मांतर से माता-पिता से एक सौगात के रूप में प्राप्त करते आये हैं।
दिन में आदमी की आँखें बाहर खुलती हैं और बाहर का सौंदर्य देखती हैं और रात में उसकी आंखें बंद हो जाती हैं, तो वह सपनों में सौंदर्य देखता है। दिन में आदमी लोक-लाजवश नियंत्रण भी रख लेगा, लेकिन सपनों में तो वह अकेला और स्वच्छंद होता है । जो मन में आये, सो करे ।
सुना है मैंने ! एक महिला ने सुबह उठते ही अपने पति को डांटा। सीधा-सादा पति; बेचारा सुबह-सुबह पत्नी के मुंह से ऐसी-वैसी बात सुनकर चौंका । उसने पूछा-आखिर बात क्या है ? पत्नी ने जवाब दिया-मैंने आपको दस-बीस औरतों के साथ बात करते हुए देखा है। वह फिर चौंका। उसने कहा-तुमने कब और कहां देखा? मैं तो घर से ऑफिस और ऑफिस से सीधा घर आता हूँ । पत्नी ने खुलासा किया कि दरअसल रात को मैंने सपना देखा था, जिसमें तुम दस-बीस औरतों के साथ बतिया रहे थे। पति ने कहा, अरे, वह तो सपना था और सपना भी तुम्हारा । पत्नी बोली, सपनों को सच होते कितनी देर लगती है। और फिर जब तुम मेरे सपनों में आकर इतना कुछ कर जाते हो, तो अपने सपनों में तो तुम क्या-क्या करते होंगे।
सपनों का सच ! सपने तुम्हारी प्रकृति को तुम्हें दर्शा देते हैं। आसुरी प्रकृति वालों को विकृत और लम्पट सपने आते हैं । कृष्ण कहते हैं कि मनुष्य अगर नरक के इस दरवाजे को पार कर जाये, तो उसके जीवन में देवत्व को घटित होने से कोई नहीं रोक सकता, मगर इसे पार करना मनुष्य को हंसी-खेल नहीं लगता । वह साठ वर्ष को हो जाये तो भी कामाग्नि में जलता रहता है । उम्र की उस दहलीज़ पर भी नरक का यह दरवाजा उसे इतना भाता है कि वह यही सोचता है यही जिंदगी है, यही जिंदगी का सुख है और यही ज़िंदगी का सार है । आपने देखा होगा कि मछुआरा अपने कांटे में आटा लगाकर सरोवर में फेंकता है।
देवत्व की दिशा में दो कदम | 195
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