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है, वह आस्तिक है और जिसका अपने से ही विश्वास उठ गया हो, वह नास्तिक है। मनुष्य को अपने आप पर भरोसा होना चाहिये; अपने पर आस्था और विश्वास होना चाहिये।
गीता कहती है कि यत्न करने वाले योगीजन अपने हृदय में स्थित आत्मा को तत्त्व से जानते हैं । आत्मा को जानना गीता की भाषा में मुक्ति के महामार्ग को पार करने के समान है। स्वयं को जानना, स्वयं के प्रति आस्था रखना धर्म का पहला संदेश और पहला सोपान है । जब मैं अपने आपके प्रति आस्था की बात कह रहा हूँ, तो मैं यह भी कहूंगा कि जीवन की जो आत्मा है; जीवन का जो सत्य और अस्तित्व है,वह हमारे स्वयं में है । उसे कहीं और ढूंढने की आवश्यकता नहीं है । अगर आत्मा कोई कल्पना होती, तो उसे पाने के लिए योजना गढ़ी जाती; वह कोई शब्द होता तो किताबों में भी ढूंढा जाता। आत्मा तो त्रैकालिक सत्य है, वह सत्य जिसके कारण मनुष्य जीवित है; जिसके कारण जीवन, जीवन है और जिससे जुदा होते ही शरीर को दफना दिया जाता है, जला दिया जाता है । उसी
आत्मा, उसी रूह से ही तो रिश्ता कायम करने का निवेदन कर रहा हूँ। 'कस्तूरी कुंडल बसै, मृग ढूंढे वन माही।' वो कस्तूरी हमारे पास ही है, उसे कहीं और न ढूंढा जाये।
मैंने सुना है : एक सूफ़ी फ़कीर महिला हुई है-राबिया वसी । राबिया के जीवन की एक घटना है। एक बार वह अपने घर के बाहर कुछ ढूंढ रही थी। उसी बीच कुछ संत, कुछ फ़कीर राबिया के पास पहुँचे । राबिया को कुछ ढूंढते हुए देखा, तो सोचा कि चलो मदद की जाये, ढूंढने में, क्योंकि राबिया की आंखें कमज़ोर हो चली हैं । वह ढूंढ पायेगी भी या नहीं । संत भी राबिया का हाथ बंटाने लगे। वे इस बात से अनजान थे कि वे आखिर ढूंढ क्या रहे हैं ? उन्होंने राबिया से पूछा कि आखिर वह किस चीज को ढूंढ रही है? राबिया ने बताया कि वह सूई ढूंढ रही है । संतों ने कहा कि सूई कहां खोई थी? राबिया ने कहा कि सई भीतर खोई थी । संत हंसने लगे कि राबिया, तेरी बुद्धि सठिया गई है । जो सूई घर के भीतर खोई है, तुम उसे घर के बाहर ढूंढ रही हो । राबिया ने कहा-क्या करूं, घर के भीतर अंधेरा था और बाहर प्रकाश है, इसलिए बाहर ढूंढने में आसानी है, सुविधा है।
राबिया की बात सुनकर फ़कीरों ने कहा-आज जाना कि राबिया कितनी
आत्मज्ञान का रहस्य | 179
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