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सतोगुण की सुवास
आज हमारे राष्ट्र की स्वतंत्रता का पुण्य दिवस है । उस राष्ट्र की स्वतंत्रता का दिवस है, जिसकी पावन माटी से, पुण्यमय पंचमहाभूतों से हमारे शरीर का निर्माण हुआ है । यह केवल राष्ट्र की स्वतंत्रता का ही स्मरण-दिवस नहीं है, वरन् उन अनगिनत शहीदों की शहादत, उनके बलिदान, उनकी कुर्बानी का भी स्मरण दिवस है। हम उन शहीदों को याद करें जिन्होंने अपनी बहिन की राखी की परवाह नहीं की; अपनी माँ की उजड़ रही कोख की परवाह नहीं की; अपनी पत्नी की मांग के सिंदूर की होली खेलना भी स्वीकार कर लिया और इस राष्ट्र को स्वतंत्रता दिलाना अपने जीवन का सबसे बड़ा कर्तव्य समझा।
राष्ट्र को स्वतंत्र कराना समय की ही पुकार नहीं थी, वरन् हम जिन धर्मों के अनुयायी हैं, उन धर्मों का भी यही संदेश रहा कि तुम न केवल अपने समाज और राष्ट्र को स्वतंत्र रखो, वरन् अपने आपको भी परतंत्र मत रखो । जैसी लड़ाई दशकों पहले हमारे बुजुर्गों ने इस देश को आजाद कराने के लिए लड़ी थी, वैसी ही लड़ाई हज़ारों साल पहले एक महाभारत की रचना करके इस भारतवर्ष को स्वाधीन कराने के लिए लड़ी गई थी। अभी राष्ट्र का मसीहा कोई गांधी बना, तो तब जगत का मसीहा कृष्ण बने। दोनों ने ही कर्मयोग की प्रेरणा देकर भारत को स्वतंत्रता दिलाने और उसका कायाकल्प करने के लिए हर नागरिक को अपनी अहम
सतोगुण की सुवास | 163
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