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तीसरी बात यह ध्यान रखें कि योग के लिए किस आसन, मुद्रा या स्थिति में बैठना, इस पर कोई बहुत ज्यादा जोर न दें। जो स्थिति आपको उपयुक्त, अनुकूल लगे, वही ठीक । वैसे सिद्धासन, जो कि सुखासन और पद्मासन के बीच का आसन है, ठीक है। कमर को स्वतः सीधी रखता है यह।
चौथी बात यह ध्यान में रखें कि ध्यान में शरीर सीधा रखें, झुकी कमर और झुकी गर्दन न बैठे, सहज सीधे रहें, पर अकड़कर भी न बैठे। स्थिर होकर बैठे, और शरीर-भाव से स्वयं को ऊपर उठा दें । नासाग्र पर चित्त को केन्द्रित करते हुए ध्यानयोग की शुरुआत करें । मन को शान्त होने दें। जब तक मन शान्त नहीं होगा, तब तक व्यक्ति आत्मा को परमात्मा से एकलय कर नहीं सकेगा।
अन्तिम, पाँचवीं बात यह भी कह दूँ कि खाने-पीने, और सोने-जगने में अतिरेक का होना बाधा पहँचाता है। ठंस-ठंस कर मत खाओ-पीओ। इससे नींद, आलस्य और प्रमाद को बढ़ावा मिलेगा। और फिर अन्नजल का सर्वथा त्यागकर उपवास-पर-उपवास भी मत करते चले जाओ। इससे इन्द्रियाँ, प्राण
और मन की शक्ति का ह्रास होता है, दोनों ही स्थितियों में स्थिरतापूर्वक बैठने में बाधा लगेगी और मन में तन्मयता की बजाय सुस्ती आएगी। पेट का आधा भाग अन्न के लिए, एक चौथाई जल के लिए और शेष एक चौथाई सांस आने-जाने के लिए, ऐसा सुझाव है । भोजन की सात्विकता और शुद्धता पर ध्यान दिया जाना चाहिये । सोने-जगने में भी लापरवाही न बरतें ।
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु ।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगोभवति दुःखहा। दुःखों का नाश करने वाला ध्यान-योग तो संयमित भोजन और भ्रमण करने वाले का, कर्मों में उपयुक्त प्रयत्न करने वाले का और यथायोग्य सोने तथा जागने वाले का ही सिद्ध होता है।
. जरूरत से ज्यादा सोना तमोगुण को बढ़ावा देगा, वहीं जरूरत से ज्यादा जगना उल्टा शारीरिक थकावट का कारण बनेगा । उचित मात्रा में नींद ली जाये, ताकि थकावट दूर हो और शरीर में स्फूर्ति और ताज़गी आए ।
ध्यान में लगे हुए मनुष्य की अन्तर-स्थिति शान्त-सौम्य रहती है, उसका
78 | जागो मेरे पार्थ
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