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है, वह मेरा ही अंश है । महावीर मनुष्य को पूर्ण गरिमा दे रहे हैं, पूर्ण स्वतंत्रता
और पूर्ण मुक्ति दे रहे हैं कि तुम अपना विकास करो, तुम्हारा सम्पूर्ण विकास होगा। कृष्ण कहते हैं कि तुम कितना ही विकास करो, कितना ही अपने व्यक्तित्व को बढ़ाते चले जाओ, तुम्हारा हर विकास मेरा विकास होगा और अगर तुम विनाश कर रहे हो, तो तुम अपने ही हाथों से मेरे विनाश पर तुले हुए हो।
परमात्मा चेतना का सागर है। उसका कोई विनाश नहीं कर सकता । चाहे सदियों-सदियों तक सूरज तपता रहे, कभी रात भी न हो, तब भी सूरज कभी भी सागर को सुखा नहीं पायेगा, सागर फिर भी लबालब रहेगा। तुम अपने हाथों से अपने को कितना ही गिराते चले जाओ, लेकिन एक-न-एक दिन ऐसा अवश्य आयेगा, जब तुम्हारा परमात्मा तुम्हें लताड़ेगा, वह तुम्हें माफ़ करने के लिए तैयार न होगा। जिंदगी भर पाप करने वाला आदमी भी जब मौत के करीब होता है, तो वह रो-रोकर अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहता है, लेकिन उसके पापों का प्रायश्चित हो नहीं पाता। तब नतीजा यह निकलता है कि आने वाला जन्म इस जन्म की पुनरावृत्ति भर होता है, तुम्हारा हर जन्म प्रायश्चित का चरण ही होता है । इसलिए जिसके भीतर आत्मा है, वह परमात्मा के साथ अपने आपको समायोजित करे।
कृष्ण एक बात साफ़ तौर पर कह देते हैं कि जो भी भूत हैं, जो भी भौतिक पदार्थ हैं, उन सब में मेरा वास है । कोई भी पदार्थ ऐसा नहीं है, जिससे मैं अलग हूँ या जो मुझसे अलग है । हर रूप में तुम मुझे देखो। अगर तुम्हारे द्वार पर कोई भिखारी आ जाये, तो यह मत समझो कि कोई भिखारी आया है। हो सकता है भिखारी के रूप में भगवान ही पहँच जाएँ। कभी समझ ही लिया कि यह भिखारी है, तो वह भूल बहुत मंहगी पड़ेगी। हो सकता है आने वाला भिक्षु, भिक्षु नहीं, वरन् चन्दनबाला के द्वार पर आकर खड़े हुए भगवान महावीर ही हों। अगर घर आये किसी व्यक्ति की उपेक्षा कर दी, तो यह भगवान की ही उपेक्षा बन जायेगी। तुम्हारे द्वार पर परमात्मा न जाने किस रूप में आ जाये, भगवान के सच्चे भक्त हैं, तो पैनी निगाह रखिएगा।
उस परमपिता परमात्मा को पहचानने वाले ही पहचान सकते हैं । यह तो कोई द्रौपदी ही पहचान सकती है कि दुनिया में जब कोई रखवाला नहीं होता, तो चीरहरण के वक्त वही रखवाला बनता है, वही रक्षा करता है । यह तो मीरा ही पहचान सकती है कि जब राणा विष भरा प्याला भेजे, तो उसे अमृत में बदलने
126 | जागो मेरे पार्थ
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