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हर धर्म का अनुयायी अपने धर्म की इज्जत करता है, अपने धर्म की बात कहता है । वह इस बात से जान-बूझकर अनजान बना रहता है कि सब धर्मों का मूलमंत्र तो एक ही है । जब निशाना एक है, तो गीता, कुरान, बाइबिल और गुरु ग्रन्थ साहिब में भेद कैसा? तीर चलाने वालों में फ़र्क हो सकता है, पर लक्ष्य सबका एक ही है । अगर लक्ष्यों में भेद हो, तो मार्गों के भेदों को महत्व दिया जा सकता है। जब सबका लक्ष्य ही एक है, तो तुम किस मार्ग से पहँचते हो, वह मूल्य नहीं रखता। पड़ाव कभी अर्थ नहीं रखते, अर्थ हमेशा मंजिल रखती है। तुम किस पगडंडी से पहुँचे; उस पगडंडी पर लाल मिट्टी थी या पीली, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। न ही फ़र्क इस बात से पड़ता है कि तुम जैन के मार्ग से पहुंचे या हिन्दू मार्ग से अथवा ईसाई, पारसी से । मार्गों को इतना मूल्य मत दो। मार्गों को मूल्य वे लोग देते हैं, जिनके पास गुणग्राहकता की क्षमता और चेतना नहीं होती । तुम्हारा काम तो सिर्फ लक्ष्य की ओर बढ़ना है ।
“ऊधो मन तो एक है, नहिं है मन दस-बीस। एक तो ले गये श्याम जी,
अब कौन भजे जगदीश” ॥ यह एक रास्ता है । एक भक्ति का रास्ता है, एक श्रमण-संस्कृति का रास्ता है। पता तो तब चलता है जब आप उस रास्ते पर थोड़ा उठने लगते हो । यूरी गागरिन जब पहली बार अंतरिक्ष में गया, तो उसने कहा मुझे पहली बार जीवन में पता चला कि जमीन पर कितना बोझ था। कहते हैं एक फकीर के पास किसी
आदमी ने जाकर कहा मुझमें बहुत घृणा, बहुत हिंसा, बहुत क्रोध है, ईर्ष्या है, जलन है। इनसे कैसे छुटकारा पाऊंगा। उस फकीर ने कहा कि कल जब मैं भिक्षा मांगने तुम्हारे दरवाजे पर आऊंगा, तब बताऊंगा।
वैसे भी वह फकीर रोजाना उसके दरवाजे पर भिक्षा मांगने जाता था। क्योंकि आज फकीर से कुछ लेना था इसलिए भिक्षा भी कछ और तरह की थी। फल थे, मिठाइयाँ थीं । जो भिक्षा दे रहा था उसने हाथ रोका और कहा कि आपके पात्र में गोबर है, कंकर है, इसमें मिठाइयाँ कैसे डालूं । सब खराब हो जायेगा। आप पात्र धो लें, फकीर ने पात्र धो लिया। फकीर चलने लगा तो उसने कहा, आप तो मुझे कुछ देने वाले थे, कुछ बताने वाले थे। उसने कहा मैंने बता दिया, मैंने
मन में,मन के पार | 139
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