Book Title: Jago Mere Parth
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 154
________________ न हो पाई तो कल सुबह कर लेंगे । मैं यहाँ कक्ष में बैठा रहता हूँ तो पाता हूँ कि मुसलमान नमाज़ अदा करने में समय के कितने पाबंद, अपनी इबादत के प्रति कितने नियमित हैं ये लोग ! एक मिनट का भी हेर-फेर नहीं करते। तभी, चलती ट्रेन हो या युद्ध की घड़ी, उस दौरान भी इबादत में खलल नहीं पड़ती। जिस धर्म को उन्होंने स्वीकार किया है, उसके प्रति इतने चुस्त हैं कि अगर रमज़ान है, तो एक बूंद पानी पीना भी उनके लिए पाप है और मज़ाल है कि थूक का एक अंश भी वे निगल जायें । जोधपुर की ही बात है कि यहां 'खांडा फलसा' में एक तरफ़ मन्दिर है और दूसरी तरफ़ मस्ज़िद है । यह बात उस समय की है, जब यहाँ अंग्रेजों का राज था । उस समय दोनों समुदायों के बीच तनाव था । तनाव का कारण यह था कि जिस समय मंदिर में आरती होती थी, उसी समय मस्जिद में नमाज़ का वक्त होता था । बात कोर्ट-कचहरी तक पहुँची, लेकिन कुछ भी समाधान नहीं निकला । तब कचहरी के बाहर मसले को हल करने की दृष्टि से न्यायाधीश ने व्यक्तिगत दिलचस्पी ली । न्यायाधीश मंदिर में पहुँचा और आदेश दिया कि आरती शुरू की जाये । आरती शुरू की गई । आधी आरती ही हुई होगी कि अंग्रेज न्यायाधीश ने कहा, “ठीक है, ठीक है, हम समझ गये । आरती को रोक दो लोग बीच में ही रुक गये । न्यायाधीश मस्ज़िद में भी पहुँचा । मस्ज़िद में पहुँचकर उन्होंने कहा कि अपनी अज़ान अता करो। उन्होंने अज़ान शुरू की । आधी अज़ान ही हुई होगी कि न्यायाधीश ने कहा- ठीक है, ठीक है, हम समझ गये । अज़ान रोक दो । मस्ज़िद इबादत करने वालों ने कहा कि अज्ञान और नमाज़ बीच में नहीं रुक सकती, चाहे फैसला हमारे पक्ष में जाये या न जाये । तब न्यायाधीश ने यह फैसला दिया कि चूंकि मन्दिर की प्रार्थना बीच में रोकी जा सकती है मस्ज़िद की अज्ञान नहीं, इसलिए आरती का समय आगे-पीछे किया जाये । मैंने इस संदर्भ का सिर्फ इसलिये उपयोग किया है, ताकि जिस नियम, जिस मार्ग पर हम आगे बढ़ रहे हैं, उस मार्ग के प्रति हमारी पूरी निष्ठा और आस्था हो । डगमगाते हुए मन से अगर किसी भी मार्ग पर चले, तो मंजिल तक नहीं पहुँच पाएंगे। एक निष्ठा, एक रस, एक भाव, एक लक्ष्य के साथ मार्ग पर बढ़ोगे 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only मन में, मन के पार | 145 www.jainelibrary.org

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