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समर्पण ही चाहिए
गीता-महासागर के ठीक मझधार में हम अपनी यात्रा कर रहे हैं । जो लोग महासागर के खतरों की परवाह किये बगैर महासागर में उतर चुके हैं, वे सागर के संपूर्ण रहस्यों को आत्मसात कर लेंगे । जो सागर में उतरने से कतराते हैं, वे किनारे पर बैठकर सिवाय लहरों को गिनने के और कुछ नहीं कर पाएँगे । मझधार तक पहुंचना एक नाविक के लिए बहुत बड़ी सफलता है। ___खतरे की संभावना किनारों पर नहीं रहती । खतरे हमारे लिए चुनौती तभी बन पाते हैं, जब हमारी नैया ठीक मझधार में पहुँच जाये । मझधार हमारे लिए कोई शत्रु नहीं है । वह तो मित्र है, बहुत बड़ा मददगार । मझधार में दिखने वाले, भंवर और ज्वारभाटे हमारे लिए चुनौती नहीं हैं, बल्कि ये चुनौतियाँ हैं हमारे बाहुबल को, हमारे आत्मबल को। इसलिए मझधारों से हमें घबराना नहीं चाहिये।
गीता के रास्ते पर चलते हुए अगर राह में पत्थर मिल जाये, तो भयभीत मत होना, क्योंकि ये पत्थर ही हमारे आगे बढ़ने के लिए सीढ़ियों का काम कर जायेंगे। चलती हुई हवाओं को देखकर उन्हें तूफ़ान समझकर मत घबराना, क्योंकि ये तूफ़ान ही हमारे लिए लंगरों को खोलने का काम करेंगे, ये तूफ़ान ही हमारे लिए पाल बनेंगे। प्रभु की हवाएँ हमें अपनी ओर बुलाने के लिए निरन्तर
128 | जागो मेरे पार्थ
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