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साथ करने के लिए तैयार हो जाता है । जैसे ये पेड़ हरे-भरे हैं, भगवान करे आप सब लोगों का जीवन उतना ही हरा-भरा हो । मेहरबानी करो और परमात्मा के साथ अपने ताल्लुकात बढ़ाओ। प्यास और पुकार जितनी सघन होगी, प्रार्थना उतनी ही जीवंत होगी। प्यास सघन चाहिये। मंदिर जाओ, गुरुद्वारा जाओ। परमात्मा का हर घर, जहाँ भी अपने परमात्मा को अपनी आस्था का केन्द्र बनाकर कोई भी चीज निर्मित कर रखी है, वहाँ जाओ। दो मिनट के लिए अपनी आंखों को बंद करो, भगवान का स्मरण करो, अपने अन्तःकरण में भगवान को आमंत्रित करो। भगवान के साथ इस संपूर्ण ब्रह्माण्ड को समग्रता के साथ आह्वान करो। अपने आप में प्रभु को देखो और अहोभाव से भर जाओ। जो भी भगवान को न्यौछावर करने का मन हो, न्यौछावर कर देना । मंदिर से निकलो और कोई याचक मिल जाये तो उसे जरूर कुछ-न-कुछ दे देना। अगर भगवान के अशेष आशीष पाना चाहते हो, तो यह आशीष पाने का एक तरीका होगा। पता नहीं, भगवान किस रूप में द्वार पर आ जाये।
अपने कर्तत्व-भाव का, अहंभाव का त्याग कर दें। उसके अनन्य प्रेम में, अपने जीवन का फूल प्रेम की सरिता में चढ़ा देना, सरिता सागर की ओर बढ़ रही है। पूर्णता स्वयं हमें अपनी गोद में ले लेगी। मेरे जीवन का फूल उस प्रेम की सरिता में अर्पित है । अन्तरमन का दरिया उस सरिता से एकलय है ।
मेरा यह अनुरोध है अगर भगवान को अपनी ओर से अपने आपको समर्पित कर सको, तो एक शान्ति, एक संतोष, एक तृप्ति अपने जीवन में हर समय, हर घड़ी महसूस करते रहेंगे, आनंदित होते रहेंगे । हम सब प्रसन्न और आनंदित रहें, ऐसे ही जैसे कोई सागर की लहरें उमड़ती हैं; जैसे हरे-भरे पेड़ लहलहाते हैं; जैसे कोई झरना फूटता है । भगवान करे हम सब उतने ही प्रसन्न, उतने ही प्रमुदित, उतने ही ज्योतिर्मान बने रहें । आज के लिए कुछ बातें निवेदन की हैं, ध्यान में लायें । नमस्कार।
योगक्षेमं वहाम्यहम् | 117
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