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की चर्चा करेंगे या केवल आन्तरिक समृद्धि की ही। अगर लेनिन या मार्क्स को देखो तो वे व्यक्ति की बाहरी समृद्धि के शास्त्र रचेंगे; हिटलर या स्टालिन को पढ़ो, तो वे मनुष्य के बाह्य युद्ध की संरचना के नियम बतायेंगे, जबकि महावीर या बुद्ध को पढ़ो, तो वे मनुष्य के आन्तरिक जीवन का मार्ग प्रशस्त करते हैं। मनुष्य अपनी अन्तरात्मा को कैसे जीत सके, अपने अन्तर्मन का स्वामी कैसे बन सके, महावीर, बुद्ध और पतंजलि के पास ये ही तो सारे सूत्र, यही तो दर्शन मौजूद
गीता का मार्ग एक ऐसा मार्ग है, जो मनुष्य को बाह्य तौर पर भी समृद्ध करना चाहता है और आन्तरिक जगत की दृष्टि से भी आपको बहुत बढ़ा-चढ़ा हआ देखना चाहता है । यह मार्ग बाह्य दृष्टि से कर्मयोग का मार्ग है, तो आन्तरिक नजरिये से संन्यास-योग का मार्ग है । जीवन से जुड़ी बातें हर किसी विचारक के मुख से सुनने को मिल जायेंगी, किताबों में पढ़ने को मिल जायेंगी, लेकिन गीता का तो 'अंदाजे-बयां' ही कुछ और है । जीवन एक गणित नहीं, एक काव्य है, यहाँ महावीर या बुद्ध की तरह कोई निर्धारित मार्ग नहीं है । काव्य का कोई तय मार्ग नहीं होता । वह तो बहता हआ निर्झर है । कब कौन-सा मोड़ ले ले, कब खंडकाव्य महाकाव्य बन जाये। काव्य का क्या जो भाव उम्दा हो, वही 'वाक्यं रसात्मकं काव्यम्' बन गया। सभी धर्मों में तीर्थंकर, पैगंबर और अवतार रहे होंगे, पर किसी के भी कृष्ण की तरह दसों हजार रानियाँ नहीं रही होंगी। कृष्ण ने उन संतों, तीर्थंकरों या पैगंबरों की तरह जंगलों में जाकर आराधना की हो, यह लगता नहीं है । लीलाधर की लीलाएँ कितनी विचित्र हैं। उनकी भगवत्ता तो बांसुरी में है, उनकी परमात्मता तो उनके पाँवों से होने वाले अहोनृत्यों में है, रासलीलाओं में है, माखन-मिश्री चुराने में है, बाँकी नजर में है।
कृष्ण का जीवन तो एक रास-लीला है, कोई भी कृष्ण को समझ नहीं पायेगा। कृष्ण दनिया को संदेश दे रहे हैं अचौर्य का और खुद माखन-मिश्री चुरा रहे हैं । दुनिया के लिए प्रेरक बन रहे हैं ब्रह्मचर्य के और खुद के पास रानियों की भरमार है; दुनिया को संदेश दे रहे हैं अहिंसा, प्रेम और करुणा का और खुद कुरुक्षेत्र के प्रांगण में खड़े होकर प्रेरणा दे रहे हैं महाभारत की। बड़ी विचित्र जीवन-गाथा है उनकी । शायद ही कोई कृष्ण को समझ पाये । जीवन भर साथ रहने के बावजूद अर्जुन भी कहाँ समझ पाया। यह तो अर्जुन ने विवश ही कर दिया कृष्ण को अपना वास्तविक स्वरूप दिखाने के लिए। अगर कृष्ण को सही
120 | जागो मेरे पार्थ
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