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कितना अच्छा हो अगर सारी दुनिया अपने सुखों को एक-दूसरे को बाँटने में, सारे विश्व में परिव्याप्त करने के लिए लगा दे। यह कुर्बानी होगी। यह धर्म के लिए, मानवता के लिए, अखिल ब्रह्माण्ड के लिए कुर्बानी होगी । इसलिए कृष्ण कहते हैं कि वह व्यक्ति परम गति को प्राप्त हो जाता है, जो शरीर को त्यागने से पहले अपने सारी इन्द्रियों को रोककर, अपने मन को हृदय - प्रदेश में स्थित करके, अपने प्राणों को अपने सहस्त्रार में केन्द्रित करता है । तब एक महाशून्य, महानृत्य, महाबोध घटित होता है । अस्तित्व अमृत बरसाता है ।
जो ॐ के अनन्त रहस्यों में डूबकर परमात्मा के परम स्वरूप में स्थित हो जाता है, उस आदमी की मृत्यु से पहले काया ऐसे ही गिर जाती है, जैसे सांप के शरीर से केंचुली अलग होती है, जैसे वस्त्र के पुराने होने पर हम उसे नीचे रख देते हैं । ऐसे ही यह शरीर नीचे रख दिया जाता है । प्राण महाप्राण में समाविष्ट होने लगते हैं, आदमी मुक्त होता है । मृत्यु हो, उससे पहले वह मुक्ति को उपलब्ध हो जाता है | भगवान करे हम सब लोगों के लिए उस मुक्ति का, निर्वाण का महामार्ग प्रशस्त हो; वो कल्याण स्वरूप, वो भद्रस्वरूप हम सबको उपलब्ध हो । यात्रा अनन्त की ओर गतिमय हो ।
आज इतना ही निवेदन करता हूँ । नमस्कार ।
102 | जागो मेरे पार्थ
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