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को करते हुए फल की इच्छा न रखना त्याग का बहुत बड़ा रूप है ।
अगर तुमने अपना मुंह कर्मयोग से मोड़ लिया, तो यह तुम्हारे मनुष्यत्व पर पूरी तरह से जंग लगने के समान होगा। अगर तुम कर्मयोग से विमुख हो जाते हो, तो यह तुम्हारे बाजुओं का अपमान होगा।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन् । कर्म करना तुम्हारा अधिकार है । फल क्या मिलेगा, इसे तुम प्रकृति पर छोड़ दो। माना फल प्राप्त करने के लिए कर्म किया जाता है, लेकिन अगर तुम फल को ही महत्व देते रहे, तो कर्म सही तौर पर कभी नहीं कर पाओगे । कर्म ही ऐसा करो कि कर्म करना ही कर्म का फल हो जाये । संकल्प और उत्साह के साथ किया गया कर्म, किया गया श्रम स्वतः तुम्हें फल तक पहुँचाएगा, सफलता के शिखर छुआएगा। तुम्हें तो निश्चित तौर पर अपने पुरुषार्थ का उपयोग करना है। काम करो, मेहनत करो, सृजन के गीत गुनगुनाओ, जीवन के संघर्षों को स्वीकार करो । कर्म को अपनी पूजा बनाओ। 'वर्क इज वरशिप'-कार्य ही पूजा है । तन्मयतापूर्वक कार्य को सम्पादित करना राष्ट्र की भक्ति है।
तुम अगर भगवान की पूजा करते हो, तो भगवान कहेंगे कि तुम कर्म ही ऐसा करो कि तुम्हारा कर्म ही मेरी पूजा हो जाये । न तो केवल पूजा करने से पूजा होती है और न आशीर्वाद मांगने से आशीर्वाद मिलता है । कर्म ही जब पूजा बनता है, कर्म ही जब आशीर्वाद बनता है, तब सही तौर पर अर्जुन और कृष्ण के बीच, आत्मा और परमात्मा के बीच, संसार और सृष्टा के बीच सही सेतु, सही संबंध स्थापित होता है । फिर से किसी ‘इन्द्रप्रस्थ' का निर्माण होता है । तुम जीवन से संघर्ष नहीं कर पा रहे हो। तुममें जीवन से पलायन करने की भावना उग्र रूप लेती जा रही है। इसी का तो परिणाम है कि जो भारत कभी सोने की चिड़िया कहलाता था, आज वह समस्याओं से जूझ रहा है ।
__ अर्द्ध-शताब्दी पहले हिरोशिमा-नागासाकी नगरों पर बम गिराये गये । वे दोनों नगर तहस-नहस हो गये, लेकिन वे आज आबाद हैं । उसी दौरान जर्मनी
और जापान जैसे नगर युद्ध की आग में जल रहे थे जिसका प्रभाव यह हुआ कि वे अपने उस समय से काफ़ी पिछड़ गये, लेकिन कुछ ही वर्षों में वे देश विश्व-क्षितिज पर अग्रिम पंक्ति के रूप में उभरे । इस उन्नति का एक ही कारण
कर्मयोग का आह्वान। 25
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