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हो । बाहर में चंगे हैं, तो भीतर भी वैसी ही मौज, वैसा ही आनन्द । गीता कहती है कि अगर तुम अपना हर कृत्य भगवान को अर्पित कर अनासक्त होकर जीते हो, तो पाप छूटेंगे और जीवन निष्पाप होता चला जायेगा। तब पाप हमसे न हो पायेगा।
जिस परमात्मा के अस्तित्व के बारे में सन्देह प्रकट किया जाता है, उसे मैंने देखा है, अपनी आँखों में, औरों की आँखों में । कोई अगर परमात्मा को देखना चाहता है, तो अपनी आँखें बंद करे और उन बंद आँखों में परमात्मा को देखे। फिर भी न दिखाई दे, तो एक बार मेरे तक आये और मेरी बंद आँखों के भीतर अपनी आँखें बंद कर उस परमात्मा की छवि को निहारे । उसकी आभा, उसका प्रमोद, उसकी शांति, उसका पुलक-भाव अभिभूत करेगा, रोमांचित करेगा। वही तो है जो सबके भीतर प्यास जगाता है, मुझसे लोगों को जोड़ता है। लोग मुझ से नहीं, उस परमात्मा से जुड़ते हैं। आखिर हम सभी उसी के पर्याय हैं । न वह हम से अलग, न हम उससे जुदा । परमात्मा अस्तित्व का पर्याय है।
कहते है : एक राजा था, उसकी एक लड़की थी, लड़की बहुत आस्तिक थी, उसका पूरा समय ईश्वर की आराधना में गुजरता था। उसे कुछ और सुझाई ही नहीं देता सिवाय इसके कि वह पूजा करे, सिवाय इसके कि वह मंदिरों में रहे। राजा को चिन्ता हुई कि इसका विवाह किससे किया जाए। राजा ने खोज शुरू की। एक दिन एक मंदिर के बाहर एक व्यक्ति बैठा दिखा । उससे राजा के लोगों ने पूछा, कहाँ रहते हो । उसने कहा-जहाँ प्रभु रखे। क्या खाते हो? जो प्रभु खिलाये। राजा के लोगों को लगा कि यह उपयुक्त पात्र है। इससे लड़की का विवाह हो जाये तो ठीक रहेगा। राजा से मिलवाया गया। राजा ने उनका विवाह तय कर दिया। विवाह के बाद वह ब्राह्मण राजकुमारी को लेकर एक दरख्त के नीचे गया। दरख्त की कोटर में एक रोटी का टुकड़ा रखा था। राजकुमारी ने रोटी का टुकड़ा देखा और वह रोने लगी । ब्राह्मण युवक राजकुमारी को समझाने लगा-देखो, मैंने तुम्हें पहले ही कहा था कि मेरे साथ रहना असंभव है मगर तुम नहीं मानी। उसने कहा-नहीं, मैं इसलिए नहीं रो रही हूँ कि अभाव ज्यादा है, बल्कि इसलिए रो रही हूँ कि मैंने सुना था कि तुम्हारा प्रभु में असीम-अटल विश्वास है, पर रोटी का टुकड़ा रखकर तुमने कल के इंतजाम की चेष्टा की, जो इस बात का गवाह है कि तुम्हारा विश्वास अधूरा है। कल का इंतजाम तो उसे
अनासक्ति का विज्ञान | 61
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