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रहा कि वहाँ के जन-जन की श्रम के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा ने उन देशों को पुनः स्वर्णिम गौरवमय स्थान दिलाया। उन देशों ने कर्म से पलायन नहीं किया, जबकि हमारे देश में ऐसा नहीं हुआ। हमने कर्मयोग से अपने आपको पीछे धकेल लिया है । अच्छा होगा अगर इस देश को आबाद करना है, ऊंचा उठाना है, तो निश्चित तौर पर हमें कृष्ण के कर्मयोग से जुड़ना होगा।
नये सृजन के लिए उठाओ अपनी बाँहें आज देश की धरती का श्रृंगार करो। कलषित मनोवृत्ति को गाडो आज कब्र में आज नये सरगम के स्वर लहराये जाते । आज भुजाओं के पौरुष का मान बढ़ा है आज स्वेद-कण के सागर शर्माये जाते । देखो हल की नोक सृजन का बिरवा बोती देखो आज हथौड़े ने शृगांर किया है । देखो उठी कुदाली की इस सृजन शक्ति को जिसने जर्जर ढांचे को आधार दिया है। तट पर खड़े लहर गिनने से क्या संभव है साहस है तो चलो, आज मझधार चलो। मोड़ चलो रफ्तार बाढ़ के इस पानी की साहस हो तो तूफ़ानों को बाँध चलो। श्रमचोरों की शक्ति सिर्फ़ दिखलावे की है धन से नहीं, पसीने की बूंदों से प्यार करो। नये सृजन की नींव रखो धरती पर
नयी कल्पना-प्रेयसी का श्रृंगार करो। हम अपने हाथ नये सृजन के लिए आगे बढ़ायें और इस धरती को नये सिरे से सजाएँ-संवारें । अपने मन में पल रही कलुषित मनोवृत्तियों को कब्र में दफना डालें । तभी फ़िजाओं में नये गीत, नई स्वर लहरियाँ उभरेंगी। जब हल की नोक, हथौड़े का प्रहार और कुदाली का धरती से हर स्पर्श नव-सृजन को जन्म
26 | जागो मेरे पार्थ
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