Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
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जघन्यकालदोळु पर्चुववी प्रथमकांडक्के परिपाटियिदं ध्रु वाध ववृद्धिगळ देशावधिय सर्व्वक्षेत्रकालकांडकंगळोळु तत् क्षेत्रकालानुसारदिदं संभविसुववल्लि क्षेत्रवृद्धिगळ ध्रुवरूपविवक्षयदं तत्तत्कांडकदोळवस्थित रूपमक्कुमा ववृद्धिविबक्षैयदं तत्तत्कांडकदो प्रथमकांडकं मोदलागि क्षेत्रानुसारमागि केलवेडेयोछु घनांगुला संख्यातैकभागमात्रं केलवडेयोल घनांगुलसंख्या तक भागमात्र केलवेडयोलु घनांगुलमात्रं केलवडेयोल संख्यातघनांगुलमात्रं केलवडेयोळसंख्यातघनांगुलमा ५ केलवडेयो श्रेय संख्येयभागमात्रं केलवडेयोल श्रेणिसंख्येयभागमात्रं केलबेडेयाळु श्रेणिमात्रं केलवडेयोळु संख्यातश्रेणिमात्रं केलवडेयोळसंख्यात श्रेणिमात्रं केलवेडेयाळं प्रतराऽसंख्येयभागमात्रं केलवडेयोळं प्रतरसंख्येयभागमात्रं केलवडेयो प्रतरमात्रं केलवेडेपोळ संख्यातप्रतरमात्रं क्षेत्रप्रदेशंगल क्षेत्र दो पेचिदागलों दो दु समयदमधस्तनकालद मेले पर्चुगुमित संख्यातवारं पच्च वक्तव्यमकुमारर्णादिदमुत्कृष्ट क्षेत्रकालंगळु त्पत्तिगाळिवरोधिसल्पडवे दितु सिद्धंग | संखातीदा समया पढमे पव्वम्मि उभयदो वड्ढी ।
खेत्तं कालं अस्सिय पढमादी कंडये बोच्छं ॥ ४०३ ॥
संख्यातीताः समयाः प्रथमे पर्वणि उभयतो वृद्धिः । क्षेत्रं कालमाश्रित्य प्रथमादिकांडकानि
वक्ष्यामि ॥
प्रथमे पर्व्वणि मोदकांडकदोळु संख्यातीताः समयाः असंख्यातसमयंगळु पूर्वोक्तप्रमितं- १५ गळु ८०१ उभयतो वृद्धिः ध्रु वाध वरूपददं वृद्धियरियल्पडुगुं । क्षेत्रमुमं कालमनाश्रयिसि
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जघन्यकालस्योपरि एकैकः समयो वर्धते ॥ ४०२ ॥
एवं सति प्रथमे पर्वणि काण्ड के उभयतः ध्रुवरूपतोऽध्रुवरूपतो वा वृद्धिः क्षेत्रवृद्धिः संख्यातीताः समयाः जघन्यकालोनतदुत्कृष्टकाल मात्राः स्युः ८ । -१ क्षेत्रवृद्धिस्तु तज्जघन्य क्षेत्रोनतदुत्कृष्टक्षेत्रमात्री ६ । -१ इमौ २० १।३।
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वृद्धिक्षेत्रकालो जघन्यक्षेत्रकालाभ्यां - ६ । ८ समच्छेदेन ६ । २ । ८ । १ मेलयित्वा ६ । २ । ८ । अपवर्तित
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। ६ । ८ प्रथमकाण्डकचरमविकल्पविषयो क्षेत्रकालौ स्यातां । इतः परं क्षेत्रं कालं चाश्रित्य प्रथमादीनि एकान्न212
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घनांगुलके असंख्यातवें भाग और कभी घनांगुलके संख्यातवें भाग प्रदेशोंकी वृद्धि होनेपर कालमें एक समयकी वृद्धिके होनेको अध्रुववृद्धि कहते हैं ||४०२||
इस प्रकार पहले काण्डकमें ध्रुवरूप और अध्रवरूपसे एक-एक समय बढ़ते-बढ़ते २५ असंख्यात समयकी वृद्धि होती है। सो प्रथमकाण्डकके उत्कृष्टकालके समयोंमें-से जघन्यकालके समय को घटानेपर जो शेष रहे उतने असंख्यात समयोंकी वृद्धि प्रथम काण्डकमें होती है । इसी तरह प्रथमकाण्डकके उत्कृष्ट क्षेत्रके प्रदेशों में से उसके जघन्य क्षेत्र के प्रदेशों को घटाने पर जो शेष रहे उतने प्रदेशप्रमाण प्रथम काण्डकमें क्षेत्र वृद्धि होती है। इन वृद्धिरूप क्षेत्र और कालको जघन्य क्षेत्र और जघन्य कालमें जोड़नेपर प्रथम काण्डकके अन्तिम विकल्पके क्षेत्र ३० और काल होते हैं । अर्थात् वृद्धिरूप प्रदेशोंके परिमाणको जघन्य क्षेत्र घनांगुलके असंख्यातवें भागमें मिलानेपर प्रथम काण्डकके अन्तिम भेदके क्षेत्रका प्रमाण होता है। इसी प्रकार वृद्धि - रूप समयों के परिमाणको जघन्य काल आवलीके असंख्यातवें भाग में जोड़नेपर प्रथम काण्डक
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