Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 437
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका निकायमप्पुवु । मिश्रगुणस्थानदोळु पर्याप्तपंचेंद्रियत्रस कायिकमेयक्कुं । असंयतगुणस्थानदोळु पर्याप्त पर्याप्त संज्ञिपंचेंद्रियत्र स कायिकमेयक्कं । देशसंयतगुणस्थानदोळु पर्याप्तसंज्ञिपंचेंद्रियत्रसकायिक मेक्कु । प्रमत्तगुणस्थानदोळु संज्ञिपंचेंद्रियपय्र्याप्तत्रसकायिक मक्कुम लियाहारक ऋद्धिप्राप्तनोळु आहारकशरीरपंचेंद्रियपर्याप्तापर्य्याप्तत्र सकायिकमक्कु । अप्रमत्तगुणस्थानं मोदगोंड क्षीणकषाय गुणस्थानपर्यंत मारुं गुणस्थानंगळोळ प्रत्येकं पर्याप्त पंचेंद्रियत्रसकायिकमेयवकुं । सयोगकेवलिगुणस्थानदोळ पर्याप्तसंज्ञिपंचेद्रियत्रसकायिकमक्कुमल्लि समुद्घातसयोगकेवलि भट्टारकनो औदारिकमिश्रयोगमुं कार्म्मणकाययोगमुमुळ्ळु दरिदमपर्याप्तपंचेंद्रियत्रसकायिकमुमक्कुं । अयोगिकेवलिभट्टारकनोळु पर्याप्त पंचेंद्रियत्रसकायिकमक्कं ५ मि । सा । मि । अ । दे । प्र । अ । अ । अ । सू । उ । क्षी । स । ६।६।१ । १ । १ । १ । १ । १ । १ 1 १ । १ । १ । १ । ९२३ पुद्गलविपाकिश रोरांगोपांगनामकम्र्मोदयंगळदं मनोवचनकाययुक्तमप्प जीवक्के कम्मैनोकर्म्मागमनकारणमप्पुदावुदो दु शक्ति जीवप्रदेशपरिस्पंदसंभूतमदु योगर्म बुदक्कुमदु मनोवचनकाय - १० प्रवृत्तिभेर्दाद त्रिविधमक्कुमल्लि वीर्य्यातरायनोइंद्रियावरणक्षयोपशर्मादिदमंगोपांगनामकम्मोंदर्याददं - मनःपर्य्याप्तियुक्तंगे मनोवर्गणायात पुद्गलस्कंधंगळगे अष्टच्छदाविदाकारदिदं हृदयदोळु निर्माणनामकर्मोदयसंपादितद्रव्यमनः पद्मपत्रग्रगलोळु नोइंद्रियक्षयोपशमजीवप्रदेशप्रचयदोळु लब्ध्युपयोगलक्षणभावेंद्रियं मनमें बुदक्कुमा मनोव्यापारमं मनोयोग में बुदा मनोयोगमुं सत्याद्यत्थं पर्याप्ताः संज्ञित्रसकायः उभयश्चेति षड्जीवनिकायः । मिश्र संज्ञिपञ्चेन्द्रियत्रसकायपर्याप्त एव । असंयते उभयः, १५ देशसंयते पर्याप्त एव । प्रमत्ते पर्याप्तः । साहारकधिस्तूभयः । अप्रमत्तादिक्षीणकषायान्तेषु पर्याप्त एव । सयोगे पर्याप्तः । ससमुद्घाते तूभयः । अयोगे पर्याप्त एव । अ | १ । पुद्गलविपाकिशरीराङ्गोपाङ्गनामकर्मोदयैः मनोवचनकाययुक्तजीवस्य कर्मनो कर्मागमकारणा या शक्तिः तज्जनित जीव प्रदेशपरिस्पन्दनं वा योगः स च मनोवचनकायवृत्तिभेदात्त्रेधा । तत्र वीर्यान्तरायनोइन्द्रियावरणक्षयोपशमेन अङ्गोपाङ्गनामोदयेन च मनःपर्याप्तियुक्तजीवस्य मनोवर्गणायातपुद्गलस्कन्वानां अष्टच्छदारविन्दा- २० कारेण हृदये निर्माणनामोदयसंपादितं द्रव्यमनः । तत्पत्राग्रेषु नोइन्द्रियावरणक्षयोपशमयुक्तजीवप्रदेश प्रचये तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय त्रसकाय अपर्याप्त होते हैं। संज्ञी पंचेन्द्रिय काय दोनों होते हैं । इस प्रकार इस गुणस्थान में छहों जीवनिकाय होते हैं। मिश्र में संज्ञी पंचेन्द्रिय काय पर्याप्त ही है । असंयत में दोनों हैं । देशसंयत में पर्याप्त ही है । प्रमत्तमें पर्याप्त है । आहारक ऋद्धि सहित दोनों हैं । अप्रमत्तसे क्षीणकषायपर्यन्त दोनों हैं । सयोगी में पर्याप्त है। समुद्घात में दोनों हैं। अयोगीमें पर्याप्त ही है । २५ Jain Education International पुद्गलविपाकी शरीर और अंगोपांग नामकर्मके उदय के साथ मन-वचन-काय से युक्त जीवके कर्म- नोकर्म के आनेमें कारण जो शक्ति है अथवा उसके द्वारा होनेवाला जो जीवके प्रदेशोंका चलन है, वह योग है । वह मन-वचन-कायकी प्रवृत्ति के भेदसे तीन प्रकारका है । वीर्यान्तराय और नोइन्द्रियावरणके क्षयोपशमसे तथा अंगोपांगनाम कर्मके उदयसे मन:पर्याप्ति से युक्त जीवके मनोवर्गणारूपसे आये हुए पुद्गल स्कन्धोंका आठ पांखुडीके कमलके आकार से हृदय में निर्माणनाम कर्मके उदयसे रचा गया द्रव्यमन है । उन पाँखुड़ी के अग्रभागों में For Private & Personal Use Only ३० www.jainelibrary.org

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