Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवात्त्वप्रदीपिका गुणस्थानंगळोळु षष्ठगुणस्थानत्तिप्रमत्तसंयतनोळाहारक आहारकमिश्र बाळापद्वयम पेन्दु ल्वेडेके दोडा गुणस्थानदोळु अशुभवेदोदयमुळ्ळरोळाहाद्धि संभविसदप्परिदं हत्यपमाणं पसत्थुदयमेंदाहारकशरीरदोळु प्रशस्तप्रकृतिगळगुवयनियममुंटप्पुरिदं । वेदमागंणयोळनिवृत्तिकरणसवेदभागिपथ्यंतमों भत्तं गुणस्थानंगळप्पुवु। मेलण नाल्कुमवेवभागिपथ्यंतं कषायमार्गणय क्रोवदों भत्तुं मानदो भत्तु मायेयो भत्तु बादरलोभवों भत्तुं मिथ्यादृष्टिगुणस्थानमादियागिई ५ गुणस्थानंगळोळं सूक्ष्मलोभक्के सूक्ष्मसांपरायगुणस्थानदोळं ज्ञानमार्गणय कुमतिज्ञानदेरडं कुश्रुतज्ञानदेरडं विभंगज्ञानदेरडु मतिज्ञानदो भत्तु श्रुतज्ञानदो भत्तं अवधिज्ञानदो भत्तं मनःपर्यायज्ञानदेळं केवलज्ञानदेरडुं गुणस्थानंगळोळु। संयममार्गणेय असंयमद नाल्कुं देशसंयमदों, सामायिकद नाल्कु छेदोपस्थापनद नाल्कुं परिहारविशुद्धि संयमदेर९ सूक्ष्मसांपाएसंयमदों दुं यथाख्यातसंयमद नाल्कुं गुणस्थानंगळोळं दर्शनमागणेय चक्षुर्दशंनद पन्नेरडु गुणस्थानंगळोळमचक्षुर्दर्शनव पन्नेर९१० अवधिदर्शनदों भत्तुं केवलदर्शनदरई गुणस्थानंगळोळं लेश्यामार्गणय कृष्णनीलकपोतंगळनाल्कुं नाल्कुं गुणस्थानंगळोळं तेजःपदमंगळे गुणस्थानंगळोळं शुक्ललेश्येय पदिमूलं गुणस्थानंगळोळ भव्यमार्गणेयोळु भव्यन पदिनाल्कुमभव्यनवोंदु गुणस्थानंगळोळं सम्यक्त्वमाग्गंणेय मिथ्यात्वदों, सासादननतन्नोंदु मिश्रन तन्नोंदु द्वितीयोपशमसम्यक्त्वटुं प्रथमोपशमसम्यक्त्वदनाल्कुं वेदकसम्यक्त्वद नाल्कुं क्षायिकसम्यक्त्वद पन्नोंदु गुणस्थानंगळोळं संज्ञिमार्गणेयोळु संज्ञिय १५ द्रव्यपुरुष भावस्त्रीद्रव्यपुरुषे च प्रमत्तसंयते आहारकतन्मिश्रालापौ न । 'हत्यपमाणं पससत्थुदयं” इत्याहारकशरीरे प्रशस्तप्रकृतीनामेवोदयनियमात् । वेदानामनिवृत्तिकरणसवेदभागान्तेषु क्रोधमानमायाबादरलोभानां अवेदचतुर्भागान्तेषु सूक्ष्मलोभस्य सूक्ष्मसांपराये । ज्ञानमार्गणायां कुमतिकुश्रुतविभङ्गानां द्वयोः, मतिश्रुतावधीनां नवसु, मनःपर्ययस्य सप्तसु, केवलज्ञानस्य द्वयोः, असंयमस्य चतुर्यु, देशसंयमस्य एकस्मिन्, सामायिकछेदोपस्थापनयोश्चतुर्पु, परिहारविशुद्धेर्द्वयोः, सूक्ष्मसांपरायस्य एकस्मिन्, यथाख्यातस्य चतुर्पु, चक्षुरचक्षुर्दर्शनयोः २० द्वादशसु, अवधिदर्शनस्य नवसु, केवलदर्शनस्य द्वयोः, कृष्णनीलकपोतानां चतुर्यु, तेजःपद्मयोः सप्तसु, शुक्लायास्त्रयोदशसु, भव्यमार्गणायां भव्यस्य चतुर्दशसु, अभव्यस्य एकस्मिन्, सम्यक्त्वमार्गणायां मिथ्यात्वसासादनमिश्राणामेकैकस्मिन, द्वितीयोपशमस्य अष्टसु, प्रथमोपशमवेदकयोश्चतुर्ष, क्षायिकस्य एकादशसु, संज्ञिनोखो द्रव्यसे पुरुषके प्रमत्तसंयतमें आहारक-आहारक मिश्र आलाप नहीं होते। क्योंकि 'हत्थपमाणं पसत्थुदयं' इस आगम प्रमाणके अनुसार आहारक शरीर में प्रशस्त प्रकृतियोंके २५ ही उदयका नियम है। वेद अनिवृतिकरणके सवेद भाग पर्यन्त होते हैं । क्रोध, मान, माया, बादर लोभ अनिवृत्तिकरणके वेदरहित चार भागपर्यन्त क्रमसे होते हैं। सूक्ष्मलोभ सूक्ष्मसाम्परायमें होता है । ज्ञानमार्गणामें कुमति, कुश्रुत और विभंगके दो गुणस्थान हैं । मतिश्रुतअवधिके नौ गुणस्थान हैं। मनःपर्ययके सात गुणस्थान हैं। केवलज्ञानके दो गुणस्थान हैं । असंयतके चार गुणस्थान हैं, देशसंयतका एक गुणस्थान है। सामायिक छेदोपस्थापनाके, चार गुणस्थान हैं। परिहारविशुद्धिके दो, सूक्ष्मसाम्परायका एक, यथाख्यातके चार, चक्षुदर्शन-अचक्षुदर्शनके बारह, अवधिदर्शनके नौ, केवलदर्शनके दो, कृष्ण-नील-कापोतलेश्याके चार, तेज और पद्मके सात, शुक्ललेश्याके तेरह, भव्यमार्गणामें भव्यके चौदह, अभव्यका एक, सम्यक्त्वमार्गणामें मिध्यात्व,सासादन, मिश्रका एक-एक गुणस्थान है। द्वितीयोपशमसम्यक्त्वके आठ, प्रथमोपशम और वेदकके चार, क्षायिक सम्यक्त्वके ग्यारह, संज्ञीके
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