Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 457
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका सण्णी ओघे मिच्छे गुणपडिवण्णे य मूल आलावा । लद्धिअपुण्णे एक्को अपज्जत्तो होदि आलावो ॥७२०॥ संश्योघे मिथ्यादृष्टौ गुणप्रतिपन्ने च मूलालापाः। लब्ध्यपर्याप्त एकोऽपर्याप्तो भवत्यालापः ॥ संज्ञिपंचेंद्रियसामान्यदोल गुणस्थानपंचकमक्कुमल्लि मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोळ मूला- ५ लापंगळु मूरुमप्पुवु । गुणप्रतिपन्नरप्प सासादनसम्यग्दृष्टिगुणस्थानदोळमसंयतसम्यग्दृष्टिगुणस्थानदोळं मूलालापंगळु सामान्यपर्याप्तनिवृत्यपर्याप्तमें बमूहमालापंगळप्पुवु। मिश्रदेशसंयतगुणप्रतिपन्नरोळु मूलालापमोदे पर्याप्तालापमक्कु । संजिपंचेंद्रियलब्ध्यपर्याप्तनोळु लब्ध्यपर्याप्तालापमों देयक्कं। अनंतरं कायमार्गणेयोळापमं गाथाद्वर्याददं पेळ्दपं । भू आउतेउवाऊणिच्चचदुग्गदिणिगोदगे तिण्णि । ताणं थूलिदरेसु वि पत्तेगे तद्दु भेदेवि ॥७२१॥ भूवप्तेजोवायुनित्यचतुर्गतिनिगोदे त्रयः । तेषां स्थूलेतरेष्वपि प्रत्येके तद्धिभेदेपि ॥ तसजीवाणं ओघे मिच्छादिगुणेवि ओघालावो । लद्धिअपुण्णे एक्कोअपज्जत्तो होदि आलावो ॥७२२॥ त्रसजीवानामोघे मिथ्यादृष्टिगुणेपि ओघालापः । लब्ध्यपर्याप्त एकोऽपर्याप्तो भवत्यालापः॥ संज्ञिसामान्ये पञ्चगुणस्थानेषु मिथ्यादृष्टो मूलालापास्त्रयो भवन्ति । गुणप्रतिपन्नेषु तु सासादनाऽसंयतयोः सामान्यपर्याप्तनिवृत्त्यपर्याप्ताः मूलालापास्त्रयो भवन्ति । मिश्रदेशसंयतयोरेकः पर्याप्त एव मूलालापः । संज्ञिलब्ध्यपर्याप्ते एकः लब्ध्यपर्याप्तालापः ॥७२०॥ अथ कायमार्गणायां गाथाद्वयेनाह पृथ्व्यप्तेजोवायुनित्यचतुर्गतिनिगोदेषु तद्वादरसूक्ष्मेषु च प्रत्येकवनस्पती तत्प्रतिष्ठिताप्रतिष्ठितभेदयोश्च २० आलापत्रयमेव । त्रसजीवानां सामान्येन चतुर्दशगुणस्थानेषु गुणस्थानवदालापा भवन्ति विशेषाभावात् । पृथ्व्यादिवसांतलब्ध्यपर्याप्तेषु एकः लब्ध्यपर्याप्तालाप एव ॥७२१-७२२॥ अथ योगमार्गणायामाह---- __सामान्य संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यचके पाँच गुणस्थान होते हैं। उनमें से मिथ्यादृष्टि में तीन मूल आलाप होते हैं। जो ऊपरके गुणस्थानोंमें चढ़े हैं उनके सासादन और असंयतमें सामान्य पर्याप्त नित्यपर्याप्त तीन मूल आलाप होते हैं। मिश्र और देश संयतमें एक पर्याप्त २५ ही मूल आलाप है । संज्ञी लब्ध्यपर्याप्त में एक लब्ध्यपर्याप्त आलाप है ।।७२०॥ कायमार्गणामें दो गाथाओंसे कहते हैं पृथिवी, अप, तेज, वायु, नित्यनिगोद, चतुर्गतिनिगोद, इनके बादर और सूक्ष्मभेदों में प्रत्येक वनस्पति और उसके प्रतिष्ठित अप्रतिष्ठित भेदोंमें तीन ही आलाप होते हैं। त्रसजीवोंके सामान्यसे चौदह गुणस्थानोंमें गुणस्थानकी तरह आलाप होते हैं; कोई विशेष . बात नहीं है । पृथ्वी आदि त्रसपर्यन्त लब्ध्यपर्याप्तोंमें एक लब्ध्यपर्याप्त आलाप ही होता है ॥७२१-७२२॥ योगमार्गणामें कहते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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