Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका अज्जज्जसेणगुणगणसमूहसंधारि अजियसेणगुरु ।
भुवणगुरू जस्स गुरू सो राओ गोम्मटो जयउ ॥७३४ ॥ आव्र्यसेनगुणगणसमूह संघार्यजितसेनगुरुर्भुवनगुरुय॑स्य गुरुः स राजो य गोम्मटो जयतु॥
इंतु भगवदर्हत्परमेश्वर चारुचरणारविंदद्वंद्ववंदनानंदितपुण्यपुंजायमानश्रीमद्रायराजगुरु- ५ भूमंडलाचार्य्यमहावादवादीश्वररायवादिपितामह सकलविद्वज्जनचक्रवत्तिश्रीमदभयसूरिसिद्धांतचक्रत्ति श्रीपादपंकजरजोरंजित ललाटपटुं श्रीमत्केशवण्णविरचितमप्प गोम्मटसारकर्णाटकवृत्तिजीवतत्त्वप्रदीपिकयोळ आळापाधिकारं निरूपितमादुदु ॥
गणनगलिदिई गुणगणमणिभूषण धर्मभूषणश्रीमुनि स-1 दगणियुपरोधदि नानोणद्दे गुणि गोम्मटसारवृत्तियं केशणं ।
आर्यायसेनगुणगणसमूहसंधार्यजितसेनगुरुः भुवनगुरुर्यस्य गुरुः स राजा गोम्मटो जयतु ॥७३४॥ इत्याचार्यश्रीनेमिचन्द्रसिद्धान्तचक्रवर्तिविरचितायां गोम्मटसारापरनामपञ्चसंग्रहवृत्ती जीवतत्त्वप्रदीपिकाख्यायां जीवकाण्डे विशतिप्ररूपणासु ओघादेशयोविंशतिप्ररूपणालाप नाम
द्वाविंशतिमयोऽधिकारः समाप्तः ॥२२॥
____ आर्य आर्यसेनके गुण और गणसमूहको धारण करनेवाले अजितसेन-जो तीन । जगत्के गुरु हैं-वे जिसके गुरु हैं,वह गोम्मटराज चामुण्डराय जयवन्त हों ॥७३४॥ इस प्रकार आचार्य श्री नेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार अपर नाम पंचसंग्रहको भगवान् अर्हन्त देव परमेश्वरके सुन्दर चरणकमलोंकी वन्दनासे प्राप्त पुण्यके पुंजस्वरूप राजगुरु मण्डलाचार्य महावादी श्री अभयनन्दी सिद्धान्तचक्रवर्तीके चरणकमलोंकी धूलिसे शोमित ललाटवाले श्री केशववर्णीके द्वारा रचित गोम्मटसार कर्णाटवृत्ति जीवतत्व प्रदीपिकाकी अनुसारिणी संस्कृतटीका
२० तथा उसकी अनुसारिणी पं. टोडरमल रचित सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामक माषाटीकाकी अनुसारिणी हिन्दी भाषा टीकाजीवकाण्डके अन्तर्गत बीस प्ररूपणाओं में से पालाप प्ररूपणा नामक बाईसवाँ
अधिकार सम्पूर्ण हुआ ॥२२॥
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