Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 441
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ९२७ दयजनितमिथ्यादृष्टिये अप्प सासादननोळं कुमतिकुश्रुतविभंगंगळप्पुवु । मिश्रगुणस्थानदोळु मिश्रमतिश्रुतावधिज्ञानंगळप्पुवु । असंयतसम्यग्दृष्टियोळु आद्यसम्यग्ज्ञानत्रितयमक्कुं। देशसंयतनोळं आद्यसम्यग्ज्ञानत्रितयमुमक्कं । प्रमत्तादिक्षीणकषायपय्यंतमाद्यसम्परज्ञानचतुष्टयमुमक्कुं योगिकेवलियोळमयोगिकेवलियोळमो देकेवलज्ञानमक्कुं-- मि । सा । मि । अ । दे । प्र । अ । अ । अ । सू । उ । क्षी । स । अ । ___ संज्वलनकषायनोकषायंगळुमंदोददिदं संयमपरिणाममक्कुमदुर्बु व्रतधारण समितिपालन- ५ कषायनिग्रहदंडत्यागेंद्रियजयस्वरूपमक्कुमिदु सामान्यदिदं सामायिकसंयममो देयक्कुंदेदोडे । सर्वसावधाद्विरतोस्मि ये बुदरोळेल्ला संयमंगळंतर्भावमुंटप्पुरिदं। विशेषदिदमसंयममेंहूँ देशसंयममें दुं सामायिकसंयममें दुं च्छेदोपस्थापनसंयममेंदु सूक्षमतापरायसंयम दुं यथाख्यातसंयममें दितु संयम सप्तविधमकुं। मिथ्यादृष्टिगुणस्थानं मोदल्गोंडसंयतसम्यग्दृष्टिगुणस्थानपय्यंतं असंयममक्कुं । देशसंयतगुणस्थानदोलु देशमयममकुं। प्रमत्तगुणस्थानमादियागि अनिवृत्तिकरण- १० गुणस्थानपर्यंतं नाल्कं गुणस्थानदो प्रत्येकं सामायिकच्छेदोपस्थापनसंयमंगळ रडप्पुवु । प्रमत्ताप्रमत्तगुणस्थानद्वयदोळ परिहारविशुद्धिसंयममकुं। सूक्ष्मसांपरायगुणस्थानदोळे सूक्ष्मसांपरायसंयममक्कुमुपशांतकषायक्षीणकषायसयोगाऽयोगिगुणस्थानचतुटपदोळु प्रत्येकं यथाख्यातसंयममा. देयप्पुदु मिलित्वा अष्टौ । तत्र मिथ्यादृष्टिसासादयोः कुज्ञानत्रयम् । मिश्रे तदेव मिश्रितम् । असंयते देशसंयते वा आद्यं १५ सम्यग्ज्ञानत्रयम् । प्रमत्तादिक्षीणकषायान्तमाद्यं सम्यग्ज्ञानचतुष्कम् । सयोगायोगयोरेक केवलज्ञानमेव । संज्वलननोकषायमन्दोदयेन व्रतधारणसमितिपालनकषायनिग्रहदण्डत्यागेन्द्रियजयरूपसंयमभावो भवति । सच सामान्येन सर्वसावधाद्विरतोऽस्मीति गहीत: सामायिकनामैकः । विशेषेण असंयमदेशसंयमसामायिकछेदोपस्थापनपरिहारविशद्धिसूक्ष्मसांपराययथाख्यातभेदात्सप्तधा। तत्र' असंयतान्तमसंयमः । देशसंयते देशसंयमः । प्रमत्ताद्यनिवृत्तिकरणान्तं सामायिकछेदोपस्थापनौ। प्रमत्ताप्रमत्तयोः परिहारविशुद्धिरपि । सूक्ष्मसांपराये २० सूक्ष्मसांपरायसंयमः । उपशान्तकषायादिषु यथाख्यातः। २५ और विभंगज्ञान होते हैं। सब मिलकर आठ हैं। उनमेंसे मिथ्यादृष्टि और सासादनमें तीन अज्ञान होते हैं। मिश्रमें तीनों मिश्र रूप होते हैं। असंयत और देशसंयतमें आद्य तीन सम्यग्ज्ञान होते हैं। प्रमत्तसे क्षीणकषायपर्यन्त आदिके चार सम्यग्ज्ञान होते हैं। सयोगअयोगमें एक एक केवलज्ञान होता है। संज्वलन और नोकषायके मन्द उदयसे व्रतोंका धारण, समितियोंका पालन, कषायोंका निग्रह, दण्डोंका त्याग और इन्द्रियजयरूप संयमभाव होता है । वह सामान्यसे 'सब पापकार्योंसे विरत होता हूँ' इस प्रकार ग्रहण करनेपर सामायिकसंयम नाम पाता है। विशेषसे असंयम. देशसंयम. सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहार विशद्धि, सक्ष्म साम्पराय और यथाख्यातके भेदसे सात प्रकारका है। असंयत गुणस्थान पर्यन्त असंयम होता है। देशसंयतमें देशसंयम है। प्रमत्तसे अनिवृत्तिकरण पर्यन्त सामायिक और छेदोपस्थापना होते हैं। प्रमत्त और अप्रमत्तमें परिहारविशुद्धि भी होता है । सूक्ष्म साम्परायमें सूक्ष्म साम्पराय संयम होता है। उपशान्तकषाय आदिमें यथाख्यात होता है। १. म मेकेंदोडे । २. ब असंयतदेशसंयतयोश्चाद्यं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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