Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 440
________________ गो० जीवकाण्डे चारित्रमोहनीय भेदंगळप्प क्रोधचतुष्क मानचतुष्क मायाचतुष्कलोभचतुष्कंगळे यथायोग्यमागुदयमागुत्तिर क्रोधिगळं मानिगळ मायिगळ, लोभिगळ मप्परु । मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोळ, चतुर्गतिय नानाक्रोग मानिगळ, मायिगळ ं लोभिगळ मप्पर । सासादन गुणस्थानदोळ' चतुतिय नानाक्रोधिमानिमायिलोभिगळप्पर । मिश्रगुणस्थानदोळ, अनंतानुबंधिकषायिगळ, नाल्वरु५ ळियलुदि क्रोधत्रयजीवंगळ मानत्रयजीवंगळ मायात्रयजीवंगळ, लोभत्रयजीवंगळ, मप्परु । असंयत गुणस्थानदोळ' मिश्रगुणस्थानदोळपे दंतेयप्परु | देशसंयत गुणस्थानदोळप्रत्याख्यानकषायचतुष्टयरहितमागि क्रोधद्वययुतरुं मानद्वययुतरुं मायाद्वययुतरुं लोभद्वययुतरुमप्परु । प्रमत्तगुणस्थानं मोदगो निवृत्तिकरणगुणस्थानद्वितीयभागिपर्यंतं संज्वलनक्रोधिगळप्परु | तृतीयभागिपर्यंतं संज्वलनमानिगळप्परु | चतुर्त्यभागिपर्यंतं संज्वलनमायिगळप्परु | पंचमभागिपर्यंतं संज्वलन१० बादरलोभिगळप्परु | सूक्ष्म सांपरायगुणस्थानदो सूक्ष्मसंज्वलनलोभिगळtपरु | मेलेल्लरुमकषायि ९२६ गळप्परु : मि । सा । मि । अ । दे । प्र । अ । अ । अ । सू । उ । क्षी । स । अ । ४ । ४ । ४ । ४ । ४ । ४ । ४ । ४ । ४ । १ ।० 1 lo 1 ३ २ १ मति श्रुतावधिमनः पर्य्ययज्ञानावरणक्षयोपशर्मादिदं पुट्टिद सम्यग्ज्ञानचतुष्टयमुं केवलज्ञानावरण निरवशेषक्षयदिनाद केवलज्ञान मुमितैढुं सम्यग्ज्ञानंगळु मिथ्यात्वकम्र्म्मादयदोळकूडिद मतिश्रुतावधिज्ञानावरणक्षयोपशमजनितमज्ञानं गळप्प कुमतिकुश्रुतविभंगज्ञानमें दितज्ञानत्रयं गूडि १५ मिथ्याज्ञानिगळं सम्यग्ज्ञानिगळ मेटु प्रकारमप्पर । मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोळु कुमतिकुश्रुतविभंगज्ञानिगळु मूवरुमप्पर । सासादनगुणस्थानबोळ सम्यक्त्व संयमप्रतिबंधकमप्प अनंतानुबंध्यऽन्यतमो o क्रोधादीनां चतुष्कचतुष्कस्य यथायोग्योदये सति क्रोधमानमायालोभा भवन्ति । ते च मिथ्यादृष्टी सासादने च चत्वारश्चत्वारः । मिश्रासंयत योविना अनन्तानुबन्धिनस्त्रयस्त्रयः । देशसंयते विना अप्रत्याख्यानकषायान् द्वौ द्वौ । प्रमत्ताद्यनिवृत्ति करणद्वितीयभागपर्यन्तं संज्वलनक्रोधः । तृतीयभागपर्यन्तं मानः । चतुर्थ२० भागपर्यंतं माया । पञ्चमभागपर्यन्तं बादरलोभः । सूक्ष्मसांपराये सूक्ष्मलोभः । उपरि सर्वेऽपि अकषाया एव । मतिश्रुतावधिमन:पर्ययज्ञानावरणक्षयोपशमेन तत् सम्यग्ज्ञानचतुष्कं । केवलज्ञानावरणनिरवशेषक्षयेण च केवलज्ञानं, मिथ्यात्वोदय सहचरितं मतिश्रुतावधिज्ञानावरणक्षयोपशमेन कुमतिकुश्रुतविभङ्गज्ञानानि च Jain Education International 10 आदि चारके क्रोधादि चतुष्कका यथायोग्य उदय होनेपर क्रोध, मान, माया, लोभ होते हैं । मिथ्यादृष्टि और सासादनमें चार चार होते हैं। मिश्र और असंयत में अनन्तानुबन्धी के २५ बिना तीन-तीन होते हैं। देशसंयत में अप्रत्याख्यान कषायोंके बिना दो-दो होते हैं । प्रमत्तसे अनिवृत्तिकरणके द्वितीय भाग पर्यन्त संज्वलन-क्रोध होता है। तृतीय भाग पर्यन्त मान, चतुर्थभाग पर्यन्त माया, पंचमभाग पर्यन्त बादर लोभ रहता है। सूक्ष्म साम्पराय में सूक्ष्मलोभ होता है । ऊपर सब अकषाय ही होते हैं । मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधि ज्ञानावरण और मन:पर्यय ज्ञानावरणके ३० क्षयोपशमसे चारों सम्यग्ज्ञान होते हैं। केवल ज्ञानावरणके सम्पूर्णक्षय से केवलज्ञान होता है । मिध्यात्वका उदय रहते हुए मति श्रुत-अवधिज्ञानावरणोंके क्षयोपशम से कुमति, कुश्रुत For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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