Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 445
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका सम्यग्दृष्टियागि? माळकुमथवा केळगे देशसंयमगुणस्थानमं पोहि द्वितीयोपशमसम्यग्दृष्टियागिकुं. मथवा, असंयतगुणस्थानमं पोद्दि असंयतसम्यग्दृष्टियागिङमथवा मरणमादोडे देवाऽसंयतनक्कं । मेणु मिश्रप्रकृत्युददिदं मिश्रनक्कु । अनंतानुबंधिकषायोदयदिदं द्वितीयोपशमसम्यक्त्वविराधकं सासादननुमोळने बाचार्यपक्षदोळु सासादननुमक्कुमथवा मिथ्यात्वकर्मोददिदं मिथ्यादृष्टियुमक्कु बो विशेष द्वितीयोपशमसम्यक्त्वदोळरियल्पडुगुं । क्षायिकसम्यक्त्वमसंयतादिचतुर्गुण- ५ स्थानतिगळु वेदकसम्यग्दृष्टिगळकर्मभूमि जैरुमप्परवर्गळगक्कुमवर्गळं केवलि श्रुतकेवलिद्वय श्रीपादपाश्र्वदोळु सतप्रकृतिगळं निरवशेषं कोडिसि क्षायिकसम्यग्दृष्टिगळप्परु । मानुषियरुम. संयतसम्यग्दृष्टिगळु देशवतिकयरुमुपचारमहावतिकेयर केवलिद्वयपादमूलदोळु समप्रकृतिगळं क्षपियिसि क्षायिकसम्यग्दृष्टिगळप्परु । मितु सम्यक्त्वं सामान्यदिदमोंदु विशेषदिदं मिथ्यात्व सासादनमिश्रउपशमवेदकक्षायिक दितु षड्विधमकुं। मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोळु मिथ्यारुचियक्कुं। १० सासादननोळमा सासादनरुचियक्कं । मिश्रगुणस्थानदोळ मिश्ररुचियक्कुं। असंयतगुणस्थानमादियागिअप्रमत्तगुणस्थानपथ्यंत प्रत्येकमुपशमवेदकक्षायिकंगळ्मूरु सम्यक्त्वंगळप्पुवु। अपूर्वकरणगुणस्थानं मोदलागि उपशांतकषायगुणस्थानपथ्यंतमुपशमश्रेणियोळु नाल्कु गुणस्थानंगळोळु प्रत्येकमुपशमसम्यक्त्वमुं क्षायिकसम्यक्त्वमुमेरपुं संभविसुववु । क्षपकश्रेणियोळु मिथ्यादृष्टयो भवन्ति । द्वितीयोपशमसम्यक्त्वे विशेषः । स कः ? उपशमश्रेण्यारोहणार्थ सातिशयाप्रमत्तवेदकसम्यग्दृष्टिः करणत्रयपरिणामसामर्थ्यात अनन्तानबन्धिनां प्रशस्तोपशमं विना अप्रशस्तोपशमेन अधोनिषेकानुत्कृष्य वा विसंयोज्य क्षपयित्वा दर्शनमोहत्रयस्य अन्तरकरणेन अन्तरं कृत्वा उपशमविधानेन उप अनन्तरप्रथमसमये द्वितीयोपशमसम्यग्दृष्टिभूत्वा उपशमश्रेणिमारुह्य उपशान्तकषायं गत्वा अन्तर्मुहूर्त स्थित्वा क्रमेण अवतीर्य अप्रमत्तगुणस्थानं प्राप्य प्रमत्ताप्रमत्तपरावृत्तिसहस्राणि करोति । वा अधः देशसंयतमो भूत्वा आस्ते । वा असंयतो भूत्वा आस्ते । वा मरणे देवासंयतः स्यात् वामिश्रप्रकृत्युदये मिश्रः स्यात् । अनन्तानु- २० बन्ध्यन्यतमोदये द्वितीयोपशमसम्यक्त्वं विराधयतीत्याचार्यपक्षे सासादनः स्यात् वा मिथ्यात्वोदये मिथ्यादृष्टिः स्यात् इति । क्षायिकसम्यक्त्वं तु असंयतादिचतुर्गुणस्थानमनुष्याणां असंयतदेशसंयतोपचारमहाव्रतमानुषीणां मिथ्यात्वका उदय होनेपर मिथ्यादृष्टि हो जाते हैं। द्वितीयोपशम सम्यक्त्वमें विशेष कथन है। उपशम श्रेणीपर आरोहण करनेके लिए सातिशय अप्रमत्तवेदक सम्यग्दृष्टि तीन करणरूप परिणामोंकी सामर्थ्य अनन्तानुबन्धी कषायोंका प्रशस्त उपशमके बिना अप्रशस्त उपशमके २५ द्वारा नीचेके निषेकोंको उत्कर्षणके द्वारा ऊपरके निषेकोंमें स्थापित करता है अथवा विसंयोजन द्वारा अन्य प्रकृतिरूप परिणमाता है। इस तरह उनका क्षपण करके दर्शनमोहकी तीन प्रकृतियोंका अन्तरकरणके द्वारा अन्तर करके उपशम विधानके द्वारा उपशम करता है। तदनन्तर प्रथम समयमें द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टि होकर उपशम श्रेणीपर चढ़ता है। और उपशान्त कषाय तक जाकर वहाँ अन्तमुहूर्त तक ठहरकर क्रमसे उतरता हुआ अप्रमत्त ३० गुणस्थानको प्राप्त करके हजारों बार सातवेंसे छठेमें और छठेसे सातवेंमें आता-जाता है। अथवा नीचे उतरकर देशसंयमी या असंयमी हो जाता है। अथवा मरणकाल आनेपर असंयतदेव हो जाता है अथवा मिश्र प्रकृतिके उदयमें मिश्रगुणस्थानवर्ती हो जाता है । जिन आचार्योंका मत है कि अनन्तानुबन्धीका उदय होनेपर द्वितीयोपशम सम्यक्त्वकी विराधना करता है,उनके मतसे सासादन हो जाता है। अथवा मिथ्यात्वके उदयमें मिथ्यादृष्टि ३५ १. म जरुगलक्कमर्गुलु। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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