Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

Previous | Next

Page 443
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका गुणस्थानषट्कदो प्रत्येकमो दे शुक्ल लेश्येयक्कुमयोगिकेवलिभट्टारकगुणस्थान वोळ योगमिल्लप्पुर मिल्ल मि । सा । मि । अ । दे । प्र । अ । अ । अ । सू । उ । क्षी । स । अ सामग्री ६ । ६ । ६ । ६ । ३ । ३ । ३ । १ । १ । १ । १ । १ । १ । ० विशेषंगळिव सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रं गळिवमनंतज्ञानानंतदर्शन अनंतवीर्य्यानंत सुखस्वरूपनागि परिमिसके योग्यमप्पजीवं भव्यनें बनक्कुमदरविपरीतमभव्यते' बनक्कुमितु भव्या भव्य भेर्दाद जीवराशि द्विविधमकुं । मिथ्यादृष्टिगुणस्थानवोळं भव्यजीवंगलुम भव्यजीवंग लुप्पु ववरोळु अभव्यजीवंगळेल्ल कूडि परीतानंतजघन्य राशियं विरळिसि तद्राशियने रूपं प्रतिकोट्टु वग्गितसंवग्गं माडि पुट्टिद राशि युक्तानंत जघन्यमक्कुमा राशिप्रमाणमभव्यजीव राशिप्रमाणमक्कुमुळिद मिथ्यादृष्टिगळनितुं भव्यजीवजातिगलक्कुमादोडं आसन्न भव्यरुं दूरभव्य रुम भव्यसमं भव्यरुमप्परु | सासादन गुणस्थानं मोदगडु क्षीणकषायगुणस्थानपर्यन्तं यन्नोंदु गुणस्थानंगळोळु भव्यजी बंगळेयप्पुवु । सयोगकेवलिभट्टारक अयोगकेवलिभट्टारकरुँ भव्यरुम भव्यरुमल्तु :मि । सा । मि । अ । दे । प्र । अ । अ 1 अ । सू । उ । क्षी । २ । १ 1 १ । १ । १ । १ । १ । १ । १ 1 १ । १ । १ 1 क्षयोपशमलब्धिमोदलागि करणलब्धिपय्यंतमाद परिणामपरिणतनागि अनिवृत्तिकरणपरिणामचरमसमयवो अनाविमिथ्यादृष्टियाव पक्षदोळु अनंतानुबंधिचतुः कषायंगळमं दर्शनमोहनीय मिथ्यास्वकम्मंप्रकृतिमनुपशमिसि तदनंतर समयवोळ मिथ्यात्वकम्मं प्रकृत्यंतरायामांतम्मुहूर्तं कालप्रथमसमदोळ प्रथमोपशमसम्यक्त्वमं स्वीकररिति असंयतनवकुं । मेण प्रथमोपशमसम्यक्त्वमुमं देशव्रतमुमं युगपत्स्वीकरिसि देशसंयतनक्कुमथवा प्रथमोपाम सम्यक्त्वमुमं महाव्रतमुमं युगपत्स्वी करिसि १५ अप्रमत्तसंयतनक्कुमिवग्र्गळु प्रथमोपशमसम्यक्त्वग्रहणप्रथमसमयं मोदल्गों डु गुणसंक्रमविधानदिदं मिथ्यात्वप्रकृतिद्रव्यमुदय के बारदंतुपशमिसिद्दं गुणसंक्रमण भागहादिदमपकर्षसिको डु मिध्यादृष्टौ द्वौ । तत्र अभव्यराशिः जघन्ययुक्तानन्तमात्रः तेनोनः सर्वसंसारी भव्यराशिः । स च आसन्नभव्यः दूरभव्यः अभव्यसमभव्यश्चेति त्रेधा । सासादन दाक्षीणकषायान्तं भव्य एव । सयोगायोगयोर्भव्याभव्यव्यपदेशो नास्ति । ९२९ क्षयोपशमादिपञ्चलब्धिपरिणामपरिणतः अनिवृत्तिकरणचरमसमये अनादिमिध्यादृष्टिः अनन्तानुबन्धिनो मिथ्यात्वं चोपशमय्य तदनन्तरसमये मिथ्यात्वान्तरायामान्तर्मुहूर्त प्रथमसमये प्रथमोपशमसम्यक्त्वं प्राप्य असंयतो भवति । अथवा प्रथमोपशमसम्यक्त्व देशव्रते युगपत्प्राप्य देशसंयतो भवति । अथवा प्रथमोपशमसम्यक्त्व महाव्रते Jain Education International For Private & Personal Use Only १० हो, वह भव्य है । उससे विपरीत अभव्य है । मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें दोनों होते हैं। अभव्यराशि युक्तानन्त प्रमाण है। उससे हीन सब संसारी भव्यराशि है । भव्यके तीन भेद हैं- २५ आसन्नभव्य, दूरभव्य, और अभव्यके समान भव्य । सासादनसे क्षीणकषाय पर्यन्त भव्य ही होते हैं । सयोगी और अयोगी न भव्य हैं, न अभव्य । क्षयोपशम आदि पाँच लब्धिरूप परिणामोंसे परिणत हुआ अनादिमिध्यादृष्टि अनिवृत्तिकरणरूप परिणामोंके अन्तिम समयमें अनन्तानुबन्धी और मिथ्यात्वका उपशम करके उससे अनन्तर समय में मिथ्यात्व के अन्तरायाम सम्बन्धी अन्तर्मुहूर्त के प्रथम समय में प्रथमोपशम सम्यक्त्वको प्राप्त करके असंयत होता है | मिध्यात्व के ऊपर और नीचेके निषेकोंको छोड़कर अन्तर्मुहूर्त के समय प्रमाण बीच के निषेकोंका अभाव करनेको अन्तर कहते हैं । यह अनिवृत्तिकरणमें ही होता है । अस्तु, अथवा प्रथमोपशम सम्यक्त्व और देशव्रत एक साथ प्राप्त करके देशसंयत होता है । अथवा ३० I ११७ २० www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612