Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका शरीरदिदं पोरमटु निमित्मिप्रदेशावष्टब्धक्षेत्रजनित २।२ संख्यातघनांगुलदिदं विहारवत्स्व
यो
॥
४। ६५%3D७५५
॥
४६५ - ७५५५५
स्थान-राशियं गुणिसुदु = १४।६७ स्वस्वेच्छावदिदंदै विगुठ्विसिद गजादिशरीरावगाहनोपलब्धसंख्यातघनांगुलदिदं वैक्रियिक समुद्घातराशियं गुणिसुवुदु
=१।६।७ इंतु गुणिसुत्तं विरलु तंतम्म क्षेत्राक्कुं। मत्तं व्यंतरराशियं एकदेवस्थितिप्रमाणसंख्यातवर्ष । १००००। शुद्धशळाकेगळ्पूर्वोक्तंगदिदं । ११ भा १२= ५ गि सुवुदंतु भागिसुतं विरलेकसमयदोळु म्रियमाणराशियक्कु =
४६५ = ८१।१०।११ ऋजुगतिय जीवंगळ तेगेयल्वेडि पल्यासंख्यातेकभागदिदं भागिसि एकभागमं कळेदोर्ड बहुभागं विग्रहगतिय जीवंगळप्पुवु ४६५ = ८१ । १० । ०१५ प अवरोळु मारणांतिकसमुद्घातरहित
मदरोळ
गुणितमात्रत्वात् सर्वविकल्पसमीकरणलब्धेन तदर्धमात्रेण ६ । ९ हतौ तत्क्षेत्रेस्याताम्। विहारवत्स्वस्थानराशिः
संख्यातयोजनायामसूच्यङ्गलसंख्येयभागविष्कंभोत्सेधक्षेत्र २ । २ जनितसंख्यातघनाङ्गुलै: ६१ हतस्तत्क्षेत्रं १०
यो स्यात् । वैक्रियिकसमुद्घातराशिः स्वेच्छावशाद्विकुर्वितगजादिशरीरावगाहनोत्पन्नसंख्यातघनाङ्गलैः ६१ हतस्तत्क्षेत्र स्यात् । व्यन्तरराशिः एकदेवस्थितिप्रमाणसंख्यातवर्ष-१०००० शुद्धशलाकाभिः । ११ भक्तः एकसमये म्रियमाणराशिः स्यात् =
. अत्र ऋजुगतिजीवानपनेतुं पल्यासंख्यातेन भक्त्वैकभागं ४ । ६५% ८१ । १० । ११
• अपनी
सम्बन्धी क्षेत्रका प्रमाण आता है। वैक्रियिक समुद्घातके सम्बन्धमें यह ज्ञातव्य है कि देवोंके मूलशरीर तो अन्य क्षेत्रमें रहते हैं और विहार करते हुए विक्रियारूप शरीर अन्य १५ क्षेत्रमें होते हैं। दोनोंके बीच में आत्माके प्रदेश सूच्यंगुलके संख्यातवें भागमात्र ऊँचे चौड़े फैले हैं। और ऊपर मुख्यताकी अपेक्षा संख्यात योजन लम्बे कहे हैं। तथ इच्छावश हाथी, घोड़ा इत्यादि रूप विक्रिया करते हैं। उसकी अवगाहना एक जीवकी अपेक्षा संख्यात धनांगुल प्रमाण है। इससे पूर्व में कहे वैक्रियिक समुद्घात करनेवाले जीवोंके प्रमाणको गुणा करनेपर सर्वजीव सम्बन्धी वैक्रियिक समुद्घातमें क्षेत्रका परिमाण आता २. है। पीतलेश्यावालोंमें व्यन्तर देवोंका मरण अधिक होता है, अतः उनकी मुख्यतासे यहाँ मारणान्तिक समुद्घात सम्बन्धी कथन करते हैं । व्यन्तर देवोंकी संख्यामें एक व्यन्तर देवकी १. व. त्सेधमूलशरीराद् बहिनिसृतात्मप्रदेशावष्टब्धक्षेत्र २ २ जनितसंख्यातघनाङ्गुलै ६ १ हतस्तक्षेत्र ।
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