Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० जीवकाण्डे इंतु भगवदहत्परमेश्वरचारुचरणारविंदद्वंद्वं वंदनानंदितपुण्यपुंजायमानश्रीमद्रायराजगुरु भूमंडलाचार्य्यवय्यमहावादवादीश्वररायवादिपितामह सकलविद्वज्जनचक्रवत्ति श्रीपादपंकजरजोरंजितललाटपट्टं श्रीमत्केशवण्णविरचितमप्प गोम्मटसारकर्णाटकवृत्तिजीवतत्वप्रदीपिकयोळ जीवकांडविंशतिप्ररूपणंगळोळु अष्टदशसंज्ञिमार्गणाधिकारं व्याख्यातमादुदु ॥
इत्याचार्यश्रीनेमिचन्द्रसिद्धान्तचक्रवतिविरचितायां गोम्मटसारापरनामपञ्चसंग्रहवृत्ती तत्वप्रदीपिका
ख्यायां जीवकाण्डे विंशतिप्ररूपणासु संज्ञिमार्गणाप्ररूपणा नाम अष्टादशोऽधिकारः ।।१८॥
इस प्रकार आचार्य श्री नेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार अपर नाम पंचसंग्रहकी भगवान् अर्हन्त देव परमेश्वरके सुन्दर चरणकमलोंकी वन्दनासे प्राप्त पुण्यके पुंजस्वरूप राजगुरु मण्डलाचार्य महावादी श्री अमयनन्दी सिद्धान्तचक्रवर्ती के चरणकमलोंकी धूलिसे शोमित ललाटवाले श्री केशववर्णीके द्वारा रचित गोम्मटसार कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्व प्रदीपिकाकी अनुसारिणी संस्कृतटीका तथा उसकी अनुसारिणी पं. टोडरमल रचित सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामक भाषाटीकाकी अनुसारिणी हिन्दी भाषा टीकामें जीवकाण्डके अन्तर्गत भव्य प्ररूपणाओंमें-से संज्ञिमार्गणा प्ररूपणा नामक अठारहवाँ
अधिकार सम्पूर्ण हुआ ॥१८॥
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