Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 431
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ९१७ दृष्टिगुणस्थानमो देयक्कुमल्लि संजिजीवसंबंधिपर्याप्तापर्याप्तजीवसमासद्वयमुळियलुळिद द्वादशजोवसमासेगळनितुमप्पुवु नियमदिवं सं। अ १२।१ । २।१२। थावरकायप्पहुडी सजोगिचरिमोत्ति होदि आहारी । कम्मइय अणाहारी अजोगिसिद्ध वि णायव्यो ॥६९८॥ स्थावर कायप्रभृति सयोगिचरमपर्वतं भवत्याहारी। कार्मणे अनाहारी अयोगिसिद्धेपि ५. ज्ञातव्यः॥ आहारमार्गणेयोळु स्थावरकायमिथ्यादृष्टियादियागि सयोगकेवलिपयंतं पदिमूलं गुणस्थानंगळोळाहारिगळोळु आहारियक्कुमल्लि सर्वमुं जीवसमासेगळु पदिनाल्कुमप्पुवु । विग्रहगतिकार्मणकाययोगद मिथ्यादृष्टिसासादनसम्यग्दृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टिगुणस्थानत्रयमुं प्रतरलोकपूरणसमुद्घातसयोगिगुणस्थानमुमयोगिगुणस्थानमुमितुगुणस्थानपंचकदोळमनाहारियक्कुमल्लि एफेंद्रिय- १० बादरसूक्ष्मापर्याप्तजीवसमासद्वयमुं द्वित्रिचतुरिंद्रियापर्याप्तजीवसमासत्रयमुं संजिपंचेंद्रियपर्याप्तापर्याप्तद्वयमुमसंक्यपर्याप्तजीवसमासयुमितु जीवसमासाष्टकमक्कुं आ ।अ अनंतरं गुण १४।८ स्थानंगळोळु जीवसमासयं पेळ्दपरु : मिच्छे चोद्दसजीवा सासण अयदे पमत्तविरदे य । सण्णिदुर्ग सेसगुणे सण्णी पुण्णो दुखीणोत्ति ॥६९९।। मिथ्यादृष्टौ चतुर्दशजीवाः सासादने अयते प्रमत्तविरते च । संजिद्वयं शेषगुणे संज्ञिपूर्णस्तु क्षीणकषायपय्यंतं ॥ द्वौ । तु-पुनः असंज्ञिजीवः स्थावरकायाद्यसंश्यन्तमिथ्यादृष्टिगुणस्थाने एव स्यान्नियमेन तत्र जीवसमासा द्वादश संज्ञिनो द्वयाभावात् ॥६९७॥ ___आहारमार्गणायां स्थावरकायमिथ्यादृष्ट्यादिसयोगान्तं आहारी भवति । तत्र जीवसमासाश्चतुर्दश २० मिथ्यादृष्टिसासादनासंयतसयोगानां कार्मणयोगावसरे अयोगिसिद्धयोश्च अनाहारो ज्ञातव्यः । तत्र जीवसमासा अपर्याप्ताः सप्त । अयोगस्य चकः ॥६९८॥ अथ गुणस्थानेषु जीवसमासानाहअसंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्यन्त मिथ्यावृष्टि गुणस्थानमें ही होता है। नियमसे उसमें बारह जीवसमास होते हैं,क्योंकि संज्ञी सम्बन्धी दो जीवसमास नहीं होते ॥६९७॥ । आहारमार्गणामें स्थावरकाय मिथ्यादृष्टि से लेकर सयोगकेवलिपर्यन्त आहारी होता है। उसमें जीवसमास चौदह होते हैं। मिथ्यादृष्टि, सासादन, असंयत, और सयोगकेवली २५ के कार्मणयोगके समय तथा अयोगी और सिद्धोंमें अनाहारी जानना। उसमें जीवसमास अपर्याप्त सम्बन्धी सात होते हैं और अयोगीके एक पर्याप्त होता है ॥६९८॥ अब गुणस्थानोंमें जीवसमासोंको कहते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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