Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 411
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका आहारमा रंतियदुगं पि णियमेण एगदिसिगंतु । दसदिसिगदा हु सेसा पंचसमुग्धादया होंति ॥ ६६९ || आहारमारणांतिक समुद्घातद्वयमेकदिशिकं तु । दशदिग्गताः खलु शेषाः पंचसमुद्घाता भवंति ॥ आहारकसमुद्घातनुं मारणांतिक समुद्घातमें बेरडुं समुद्घातंगळेकदिशिकंगळप्पुवु । शेष- ५ वेदनासमुद्घातादिपंचसमुद्घातंगळु दशदिग्गतंगळप्पुवु । आहारानाहारकालमं पेळदपं : -: अंगुल असंभाग कालो आहारयस्स उक्कस्सो । कम्मम्मि अणाहारो उक्कस्सं तिण्णि समया हु ॥ ६७० || अंगुला संख्यात भागः काल आहारस्योत्कृष्टः । काम्मंणे अनाहारः उत्कृष्टस्त्रयः समयाः खलु ॥ १० सूच्यंगुला संख्यातै क भाग मात्रकालमहारक्कुत्कृष्ट मक्कुं । त्रिसमयोनोच्छ्वासाष्टादशैकभागमात्रकाले जघन्यमकुं । कार्मणकायदोळ अनाहारक्कुत्कृष्टकालं मूरु समयंगळप्पुवु । जघन्यकाल - मेकसमयमक्कु आहार अनाहार स उ सू २ जघ ११ उत्कृष्ट सम ३ ज स १ १८ a अनंतर माहारमार्गर्णयोळु जीवसंख्येयं पेव्वपं । ८९७ कम्मइय कायजोगी होदि अणाहारयाण परिमाणं । व्विरहिदसंसारी सच्वो आहारपरिमाणं || ६७१ ॥ कार्मणका योगिनो भवत्यनाहारकाणां परिमाणं । तद्विरहितसंसारी सः आहारकपरिमाणं ॥ Jain Education International आहारमारणान्तिकसमुद्घातद्वयमेव एकदिग्गतं भवति तु पुनः शेषाः पञ्चसमुद्घाताः दशदिग्गता २० भवन्ति ।। ६६९ ।। आहारानाहारकालमाह a आहारकाल : उत्कृष्टः सूच्यङ्गुलासंख्या तकभागः २ । जघन्यः त्रिसमयोनोच्छ्वासाष्टादशैकभागः । अनाहारकालः कार्मणकाये उत्कृष्टः त्रिसमयः । जघन्यः एकसमयः । खलु - स्फुटं ॥ ६७० ॥ अथात्र जीवसंख्यामाह आहारक और मारणान्तिक ये दो समुद्घात ही एक दिशा में गमन करते हैं । किन्तु २५ शेष पाँच समुद्घात दसों दिशाओं में गमन करते हैं ||६६९ ॥ आगे आहार और अनाहारका काल कहते हैं आहारका उत्कृष्टकाल सूच्यंगुलके असंख्यातवें भाग है । जघन्यकाल तीन समय कम उच्छ्वासका अठारहवाँ भाग है । अनाहारका काल कार्मणकाय में उत्कृष्ट तीन समय और जघन्य एक समय है ॥६७०|| इनमें जीवोंकी संख्या कहते हैं ११३ १५ For Private & Personal Use Only ३० www.jainelibrary.org

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