Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका आकाशद एकप्रदेशदोलिई परमाणु मंदगतियिदं परिणतमादुदु द्वितीयमनंतरक्षेत्रमं यावद्याति यिनितु पोन्तिगेरदुगुमदु समयमेंब कालमक्कुमा नभः प्रदेशमें बुदे ते दोड:
जेत्ति वि खेत्तमेत्तं अणुणा रुंदं खु गयणदव्वं च ।
तंच पदेसं भणियं अवरावरकारणं जस्स ॥ [ ] आवुदो दु परमाणु विगे अपरापरकारणं पिंदु मुंदुम बी व्यवस्थितिगे निमित्तमप्प गगनद्रव्य- ५ मनितु क्षेत्रमात्रं परमाणुविदं व्यापिसल्पदुदु खु स्फुटमागि सः अदु प्रदेशो भणितः प्रदेशमेंदु पेळल्पटुदु। अनंतरं व्यवहारकालमं पेळ्दपं :
आवलि असंखसमया संखेज्जावलिसम्रहमुस्सासो ।
सन्थुस्सासो थोवो सत्तत्थोवो लवो भणियो ॥५७४।। आवलिरसंख्यसमया संख्येयावलिसमूह उच्छ्वासः। सप्तोच्छ्वासा स्तोकः सप्तस्तोका लवो भणितः॥
आवळि ये बुदु असंख्यातसमयंगठनु देके दोड युक्तासंख्यातजघन्यराशिप्रमाणमप्पुरिवं। संख्यातावलिसमूहमुच्छ्वासमेंबुदक्कुमाउच्छ्वासमतप्परोळे दोडे :
अड्ढस्स अणलसस्स य णिरुवहदस्स य हवेज्ज जीवस्स। उस्सासो णिस्सासो एगो पाणोत्ति आहीदो॥[ ]
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आकाशस्य एकप्रदेशस्थितपरमाणुः मन्दगतिपरिणतः सन् द्वितीयमनन्तरक्षेत्रं यावद्याति स समयाख्यकालो भवति ॥१॥ स च प्रदेशः कियान्
जेत्तिवि खेत्तमेत्तं अणुणा रुंदं खु गयणदत्वं च ।
तं च पदेसं भणियं अवरावरकारणं जस्स ।।२।। यस्य परमाणोः अपरपरकारणं गगनद्रव्यं यावत्क्षेत्रमात्र परमाणुना व्याप्तं स्फुटं स प्रदेशो भणितः ॥२॥ अथ व्यवहारकालमाहजघन्ययुक्तासंख्यातसमयराशिः आवलिः । संख्यातावलिसमूह उच्छ्वासः । स च किंरूपः ?
अड्ढस्स अणलसस्स य णिरुवहदस्स य हवेज्ज जीवस्स । उस्सासाणिस्सासो एगो पाणोत्ति आहीदो ॥१॥
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यहाँ उपयोगी दो गाथाओंका अर्थ इस प्रकार है
आकाशके एक प्रदेश में स्थित परमाणु मन्द गतिसे चलता हुआ अनन्तरवर्ती दूसरे प्रदेशपर जितनी देर में जाता है, वह समय नामक काल है। वह प्रदेश कितना है,यह कहते हैं-आकाशके जितने क्षेत्रको एक परमाणु रोकता है, उसे प्रदेश कहते हैं। वह दूर और निकट व्यवहारमें कारण होता है।
आगे व्यवहार कालको कहते हैं
जघन्य युक्तासंख्यात प्रमाण समयोंके समूहका नाम आवली है। संख्यात आवलीके समूहका नाम उच्छ्वास है । वह सुखी, निरालसी और नीरोगी जीवका उच्छ्वास
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