Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
________________
८२०
गो० जीवकाण्डे
काश । अ । ख ख ख ख । धर्माधर्म लोकाकाशकालद्रव्यंगळु प्र।फ।पश१। इ लब्धशलाके प१ प्रश१ फ क इ । श १ लब्धं संख्यातपल्यंगळुमं लोकमुमनपत्तिसिदोर्ड इदु । इदरिदं कल्पमं फलराशियं गुणिसुत्तिरलु प्रत्येकमसंख्यातकल्पंगळप्पुव । क क । क । क । भावप्रमादिदं षड्द्रव्यंगळग प्रमाणमं पेळगुं। जीवद्रव्यंगळु प्र १६ । फ श १। इ। के। लब्धशलाकगळु के इदनपत्तिसिदोडे । ख । प्र। ख । इनितु शलाकेगळ्गे केवलज्ञानमागलु। प।के। वोदु शलाकेगेनित दु । इश।१। बंद लब्धं केवलज्ञानानंतैकभागमात्रंगळप्पुवु। वंतादोडं पुद्गलकालालोकाकाशंगळं कुरुतु भागहारभूतानंतंगळु नाल्कप्पुवु के पुद्गलंगळ
ख ख ख ख नंतगुणितंगळु के व्यवहारकालमनंतगुणितमक्कु के मलोकाकाशमनंतगुणं के
ख ख
१६
खख ख
काला भवन्ति । पु अख ख । व्य का अख ख ख। अलोक अख ख ख ख। धर्माधर्मलोकाकाशकालद्रव्याणि प्र। पफ श १ इ3 लब्धशलाका-५
प्रश १ फ क । इश a संख्यातपल्य
प लोकापवर्तने । । अनेन कल्पफलराशौ गणिते प्रत्येकं असंख्यातकल्पा भवन्ति क । क क । क । भावप्रमाणेन जीवद्रव्याणि प्र १६ फ श १ इ के लब्धशलाकाः के अपवर्तिते ख। प्रख एतावच्छलाकाभिः
M
केवलज्ञानं क के तदैकशलाकया इश १ किमिति लब्धं केवलज्ञानानन्तकभागमपि पुद्गलकालालोकाकाशापेक्षया चतुरनन्तभागहारं भवति के पुद्गलाः के व्यवहारकालः के अलोकाकाशः के
ख ख ख ख ख ख ख
ख ख १५ काल, फलराशि एक शलाका, इच्छाराशि जीवोंका परिमाण । सो लब्धराशि अनन्त शलाका
हुई। पुनःप्रमाणराशि एक शलाका, फलराशि अतीतकाल, इच्छाराशि पूर्वोक्त शलाका प्रमाण । सो फलसे इच्छाको गुणा करके प्रमाणसे भाग देनेपर लब्धराशि प्रमाण अतीतकालसे अनन्तगुणा जीवोंका प्रमाण होता है । इनसे पुद्गलद्रव्य व्यवहारकालके समय और अलोकाकाशके प्रदेश क्रमसे अनन्तगुणे होते हुए अनन्त अतीतकाल प्रमाण होते हैं। पुनः धर्मादिका प्रमाण कहते हैं-प्रमाणराशि कल्पकाल, फल एक शलाका, इच्छा लोक प्रमाण । ऐसा त्रैराशिक करनेपर लब्ध असंख्यात शलाका हुई। पुनः प्रमाणराशि एक शलाका, फलराशि कल्पकाल, इच्छाराशि पूर्वोक्त शलाका प्रमाण । ऐसा करनेपर लब्धराशि असंख्यात कल्पप्रमाण धर्म, अधर्म, लोकाकाश और काल ये चारोंको जानना । अर्थात् बीस कोड़ा-कोड़ी सागरके संख्यात
पल्य होते हैं, उतना एक कल्पकाल है। इससे असंख्यातगुणे धर्म, अधर्म, लोकाकाश और २५ कालके प्रदेश हैं। अब भावप्रमाणसे जीवद्रव्योंको बतलाते हैं-प्रमाणराशि जीवद्रव्यका
प्रमाण, फलराशि एकशलाका इच्छाराशि केवलज्ञान । लब्धप्रमाण अनन्त शलाका। पुनः प्रमाणराशि शलाकाप्रमाण । फलराशि केवलज्ञान, इच्छाराशि एक शलाका । सो लब्धराशि प्रमाण केवल ज्ञानके अनन्तवें भाग जीवद्रव्य जानने। वे पुद्गल, काल और अलोकाकाशकी
अपेक्षा चार बार अनन्तका भाग केवलज्ञानके अविभाग प्रतिच्छेदोंमें देनेसे जो प्रमाण आवे, ३० १. म पेलल्पडुगुं । २. म भूतानंतं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org |