Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
________________
८४८
गो० जीवकाण्डे गदिठाणोग्गहकिरियासाधणभूदं खु होदि धम्मतियं ।
वत्तणकिरियासाहणभूदो णियमेण कालो दु ।।६०५॥ गतिस्थानावगाहक्रियासाधनभूतं खलु भवति धर्मत्रयं । वर्तनक्रियासाधनभूतो नियमेन कालस्तु॥
देशांतरप्राप्तिहेतुवं गतिय बुदु । तद्विपरीतमं स्थानम'बुदु । अवकाशदानमनवगाहमें बुदु । गतिक्रियावंतंगळप्पजीवपुद्गलंगळ गतिक्रियासाधनभूतं धर्मद्रव्यमक्कुं। मत्स्यगमनक्रिययोल जलमें तंते। स्थानक्रियावंतंगळप्प जीवपुद्गलंगळ स्थानक्रियासाधनभूतमधर्मद्रव्यमकुं पथिकजनंगळ स्थानक्रिययोळु च्छार्य यतते ।
अवगाहक्रियावंतंगळप्प जीवपुद्गलादिद्रव्यंगळ अवगाहक्रिययोळ साधनभूतमाकाशद्रव्य१. मक्कुमिप्पंगे वसति येतंत, इल्लिये दपं क्रियावंतंगळप्प अवगाहिजीवपुद्गलंगळगे अवकाश
दानं युक्तमक्कुमितरधर्मादिद्रव्यंगळु निष्क्रियंगळं नित्यसंबंधंगळुमवक्के तवगाहदानमें दोडतल्तु येक्कदोडुपचारदिंद तत्सिद्धियक्कुमप्पुरिदं। ये तोगळु गमनाभावमागुत्तिरलुं सर्वगतमाकाशमें दितु पेळल्पट टुदु सर्वत्र सद्भावमप्पुरिदमंते धर्मादिगळ्गे अवगाहनक्रियाभावदोळं सर्वत्र व्याप्तिदर्शनदिदमवगाहमितुपरिसल्पदुदु । मत्तम दपमेत्तलानुमवकाशदानमाकाशक्क स्वभावमा
देशान्तरप्राप्तिहेतुर्गतिः । तद्विपरीतं स्थानम् । अवकाशदानमवगाहः । गतिक्रियावतोर्जीवपुद्गलयोः तक्रियासाधनभूतं धर्मद्रव्यं मत्स्यानां जलमिव । स्थानक्रियावतोर्जीवपुद्गलयोः तक्रियासाधनभूतमधर्मद्रव्यं पथिकानां छायेव । अवगाहनक्रियावतां जीवपुद्गलादीनां तत्क्रियासाधनभूतमाकाशद्रव्यं तिष्ठतो वसतिरिव । ननु क्रियावतोरवगाहिजीवपुद्गलयोरेवावकाशदानं युक्तं धर्मादीनां तु निष्क्रियाणां नित्यसंबद्धानां तत् कथं ? इति तन्न उपचारेण तत्सिद्धः । यथा गमनाभावेऽपि सर्वगतमाकाश मित्युच्यते सर्वत्र सद्भावात तथा धर्मादीनां
अवगाहनक्रियाया अभावेऽपि सर्वत्र व्याप्तिदर्शनात् अवगाह इत्युपचर्यते ॥ २० mwwwww
एक देशसे दूसरे देशको प्राप्त होने में जो कारण है, वह गति है। उससे विपरीत स्थान है। अवकाशदानको अवगाह कहते हैं। जैसे मत्स्योंको गमनमें सहायक जल है,वैसे ही गतिरूप क्रिया करते हुए जीव और पुद्गलोंकी गतिक्रियामें सहायक धर्मद्रव्य है। जैसे छाया पथिकोंके ठहरनेका साधन है, वैसे ही ठहरने रूप क्रिया परिणत जीव पुद्गलोंको
ठहरने रूप क्रियामें साधन अधर्म द्रव्य है। जैसे निवास करनेवालोंको वसतिका साधनभूत २५ है,वैसे ही अवगाहन क्रियावाले जीव, पुद्गल आदिको उस क्रियामें साधनभूत आकाशद्रव्य है।
शंकाक्रियावान् अवगाही जीव और पुद्गलोंको ही अवकाश देना युक्त है। धर्म आदि तो निष्क्रिय हैं, नित्य सम्बद्ध हैं, उन्हें अवकाशदान कैसे सम्भव है ?
समाधान-ऐसा कथन उपचारसे किया गया है। जैसे आकाशमें गमनका अभाव ३० होनेपर भी उसे सर्वगत कहा जाता है क्योंकि वह सर्वत्र पाया जाता है। वैसे ही धर्मादिमें
अवगाह क्रिया न होनेपर भी समस्त लोकाकाशमें व्याप्त होनेसे अवगाहका उपचार किया जाता है।
१५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org