Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० जीवकाण्डे णिद्धस्स गिद्धेण दुराहिएण लुक्खस्स लुक्खेण दुराहिएण ।
णिद्धस्स रुक्खेण हवेज्ज बंधो जहण्णवज्जे विसमे समे वा ॥६१५॥ स्निग्धस्य स्निग्धेन द्वयधिकेन रूक्षस्य रूक्षेण द्वयधिकेन । स्निग्धस्य रूक्षेण भवेबंधो जघन्यवये विषमे समे वा ॥
स्निग्धपरमाणुविंगे द्विगुणाधिकस्निग्धपरमाणुविनोडने बंधमक्कुमंते रूक्षाणुविर्ग द्विगुणाधिकरूक्षाणुविनोडने बंधमक्कुं। स्निग्धाणुविंगे द्विगुणाधिकरूक्षाणुविनोडने बंधमक्कुमल्लि स्निग्धरूक्षगुणंगळ परमाणुगळोळु जघन्यमप्पेकगुणयुतपरमाणुगळं वजिसि शेषसमस्निग्धधारियोळं समक्षधारियोळं विषमस्निग्धधारियोळं विषमरूक्षधारियोळं तंतम्म तदनंतरोपरितनद्वघधिकस्निग्धरूक्षंगळ्गे बंधमक्कुं। संदृष्टिः
स्नि ०२४/६/८/१०१२००७००००० ख रू ० २ ४ ६ ८/१०१२००७००००० ख स्नि | 0 | ३/५/७ ९१११३००७००००० ख
रू | 0 | ३ ५७ ९१११३/००७००००० ख इल्लि सदृशगुणयुक्तरूपियोडने रूपिंगे बंधमिल्ल। समगुणयुक्तंगलिगे विषमगुणयुक्तंगळोडर्न बंधमिल्ले बो विशेषमरियल्पडुगुमेके दोर्ड अवरोळु द्वघधिकत्वं घटियिसदप्पुरिदं ।
स्निग्धाणोः द्विगुणाधिकस्निग्धाणुना बन्धो भवति । तथा रूक्षाणोः द्विगुणाधिकरूक्षाणुना बन्धो भवति । स्निग्धाणोः द्विगुणाधिकरूक्षाणुना बन्धो भवति । तत्र स्निग्धरूक्षगुणपरमाणुषु जघन्यं एकगुणपरमाणु
वर्जयित्वा शेषाणां समस्निग्धरूक्षधारयोविषमस्निग्धरूक्षधारयोश्च स्वस्वतदनन्तरोपरितनद्वयधिकस्निग्व१५ रूक्षाणूनां बन्धो भवति । अत्र सदृशगुणरूपिणा रूपिणः, समगुणानां विषमगुणैश्च बन्धो नेति विशेषो ज्ञातव्यः,
तेषु द्वयधिकगुणत्वाभावात् ॥६१५॥
स्निग्ध परमाणुका दो गुण अधिक स्निग्ध परमाणु के साथ बन्ध होता है। उसी प्रकार रूक्ष परमाणुका दो गुण अधिक रूक्ष परमाणुके साथ बन्ध होता है। स्निग्ध परमाणुका दो
गुण अधिक रूझ परमाणुके साथ बन्ध होता है। उन स्निग्ध गुणवाले और रूक्ष गुणवाले २० परमाणुओं में जघन्य एक गुणवाले परमाणुको छोड़कर शेष समस्निग्ध धारा और सम रूक्ष
धारामें तथा विषम स्निग्ध धारा और विषम रूक्ष धारामें अपने-अपनेसे अनन्तरवर्ती दो अधिक स्निग्ध और रूक्ष गुणवाले परमाणुओंका बन्ध होता है। यहाँ इतना विशेष जानना कि सदृश गुणवाले रूपीका सदृश गुणवाले रूपीके साथ तथा समगुणवालोंका विषम गुण
वालोंके साथ बन्ध नहीं होता। अर्थात् दोका दो गुणवालेके साथ या दो गुणवालेका पाँच २५ गणवालेके साथ बन्ध नहीं होता क्योंकि यहाँ दो अधिक गुणका अभाव है ॥६१५।।
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