Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
८६३ मनुळ्ळ जीवंगळु पापजीवंगळप्पुवनंतानुबंध्यन्यतरोदयमिथ्यागुणयुतरप्पुदरिनवुवं पल्यासंख्यातेकभागप्रमाणमप्पुवु प
aar मिच्छा सावयसासणमिस्सा विरदा दुवारणता य ।
पल्लासंखेज्जदिममसंखगुणं संखगुणमसंखेज्जगुणं ।।६२४॥ मिथ्यादृष्टिश्रावकसासादन मिश्राविरताः द्विकवारानंताश्च । पल्यासंख्यातेकभागोसंख्येयगुणःऽ ५ संख्येयगुणोऽसंख्येयगुणः॥
मिथ्यादृष्टिजीवंगळु किंचिदूनसंसारिराशिप्रमितमप्पुरिदमनंतानंतगळप्पुवु ॥ १३ ॥ देशसंयतरुगळु पदिमूरुकोटि मनुष्य देशसंयतरिनधिकमप्प तिर्यग्गतिजरु पल्यासंख्यातेकभागप्रमितरप्परु ५ । धन १३ को। सासादनरुगळु मनुष्यगतिजद्विपंचाशत्कोटिसासादरिंदमधिकमप्प इतरगतित्रयजसासादनरनितुं देशसंयतरं नोडलं असंख्यातगुणमप्परु प धन ५२ को ई सासादनर- १० संख्येयं नोडलं मनुष्यगतिजमिश्ररिदं नूर नाल्कु कोटिळिंदमधिकमप्प त्रिगतिजमिश्ररु संख्यातगुणमप्परु प धन १०४ को ई मिश्रगुणस्थानत्तिजीवंगळं नोडलु मनुष्यगतिजासंयरिंदमेळ नूरु कोटिळिंदमधिकमप्प त्रिगतिजासंयतरुमसंख्यातगुणरप्परु प धन ७०० को
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१३- । सासादनगुणा अपि पापाः अनन्तानुबन्ध्यन्यतमोदयेन प्राप्तमिथ्यात्वगुणत्वात् पल्यासंख्यातकभागमात्रा भवन्ति प ॥६२३॥
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मिथ्यादृष्टयः किंचिदूनसंसारित्वादनन्तानन्ताः १३- । देशसंयताः त्रयोदशकोटिमनुष्याधिकतिर्यञ्चः पल्यासंख्यातकभागमात्रा:-पधन १३ को । तेभ्यः द्विपञ्चाशत्कोटिमनुष्याधिकेतरत्रिगतिसासादनाः असंख्यात
aa४० गुणाः प धन ५२ को। तेभ्यः चतुरुत्तरशतकोटिमनुष्याधिकत्रिगतिमिश्राः संख्यातगुणाः प धन १०४ को ।
a a a तेभ्यः सप्तशतकोटिमनुष्याधिकत्रिगत्यसंयता असंख्यातगुणा प धन ७०० को ॥६२४॥
सासादनगुणस्थानवाले भी पापी हैं। क्योंकि अनन्तानुबन्धीकषायकी चौकड़ीमें-से किसी भी २० एक क्रोधादिका उदय होनेसे मिथ्यात्वगुणस्थानको प्राप्त होते हैं। उनकी संख्या पल्यके असंख्यातवें भाग है ॥६२३।।
मिथ्यादृष्टि कुछ कम संसारी राशि प्रमाण होनेसे अनन्तानन्त हैं। देश संयत गुणस्थानवाले तेरह कोटि मनुष्य तथा पल्यके असंख्यातवें भागमात्र तिथंच हैं। उनसे बावन कोटि मनुष्य तथा शेष तीन गतिके सब सासादनगणस्थानवाले असंख्यातगुणे हैं। उनसे २५ एक सौ चार कोटि मनुष्य और शेष तीन गतिके सब मिश्र गुणस्थानवाले संख्यातगुणे हैं । उनसे सात सौ कोटि मनुष्य और शेष तीन गतिके अविरत गुणस्थानवाले सब असंख्यातगुणे हैं ॥६२४॥
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