Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ई नभ उत्कृष्टवर्गणेयोळेकरूपं कूडुतिरलु महास्कंधवर्गणेगळोळु जघन्यवर्गणेयकुं:
११
जस ३२० ख ख १२-१६ ख १३-८० ० ८ सू २a महास्कंधवर्गणा
९५ ० ० ई महास्कंधदजघन्यवरर्गयो तज्जघन्यराशियं पल्यासंख्यातदिदं खंडिसिदेकभागमं कूडुत्तिरलु महास्कंधवगर्गणेगळोळत्कृष्टवर्गणेयक्कु अप्पुरिदं :
उस ३२३ ख ख १२- १६ ख १३-८- ८-सू२० प
aaa महास्कंध
९:५३ इंतेकश्रेणियनाश्रयिसि त्रयोविंशतिवर्गणेगळ्पेळल्पटुवु ।
अत्रैकरूपे युते महास्कन्धवर्गणाजधन्यं भवति
महास्कन्ध जस ३२aaख ख १२-१६ ख १३-८=८सू २aa
अत्र अस्यैव पल्यासंख्यातेकभागे युते महास्कन्धवर्गणोत्कृष्टं भवति
महास्कन्ध उ स ३२paख ख १२-१६ ख १३-
८
८ सू२aaप a aa
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एवमेकश्रेणिमाश्रित्य त्रयोविंशतिवर्गणा उक्ताः ॥५९४-५९५॥
असंख्यातवें भागसे गुणा करनेपर उत्कृष्ट सूक्ष्मनिगोदवर्गणा होती है। सो कैसे, यह कहते हैं
महामत्स्यके शरीरमें एक बन्धनबद्ध आवलीके असंख्यातवें भागमात्र पुलवियोंमें स्थित १० गुणितकर्माश अनन्तानन्त जीवोंके विस्रसोपचय सहित औदारिक, तैजस, कार्मण शरीरोंके परमाणुओंके स्कन्ध हैं,वहीं उत्कृष्ट सूक्ष्म निगोदवर्गणा होती है। उसमें एक परमाणु अधिक करनेपर नभोवर्गणाका जघन्य होता है। इसको जगत्प्रतरके असंख्यातवें भागसे गुणा करनेपर नभोवर्गणाका उत्कृष्ट होता है। उसमें एक बढ़ानेपर महास्कन्धवगंणाका जघन्य होता है। इसमें उसीका पल्यका असंख्यातवाँ भाग बढ़ानेपर महास्कन्धवर्गणाका उत्कृष्ट १५ होता है । इस प्रकार एक श्रेणिके रूपमें तेईस वर्गणाएँ कहीं ॥५९४-५९५॥
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