Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० जीवकाण्डे
प्रदेश विसर्पणक्रमदिदं वृद्धियुत्कृष्टदिदं त्रिगुणितविस्तादिदं पुट्टिद राशि मूलराशियं नोडलु नवगुण
१।२
मक्कु ६ । ६ । ६।००।६।९ मा नवगुणमूलराशियं मुखभूमि समासार्द्ध मध्यफलमे -
७
७७
२०
७३।३ १०।
दुमुखं शून्यमक्कुमे दोडे द्वितीयविकल्पं मोदगोंड प्रदेशवृद्धिक्रममप्पुर्दारमा शून्यमं कूडिदलियिसिदोडे समीकरणद पुट्टिद मध्यमावगाहनं नवार्द्धघनांगुल संख्यातैकभागमवकुमदरिदं वेदना
५ समुद्घातराशियमं कषायसमुद्घातराशियुमं गुणिसुवुदु वेद
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= १४६।९
४ । ६५ = ५५५२
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= १४६।९ मत्तं संख्यातयोजनायाममुं सूच्यंगुल संख्यात भागविष्कंभोत्सेधमुमागि मूल४ । ६५ । ५५५ । २ संख्येयभागेन ६ हतस्तत्क्षेत्रं स्यात् । वेदनाकषायराशी द्वौ तत्समुद्घातयोर्मूलशरीरात्प्रदेशोत्तरवृद्धचा उत्कृष्टविकल्पस्य त्रिगुणितव्यासस्य वासो तिगुणो परिहीत्याद्यानीत - ७ । ३ । ३ । ७ । ३ । ७ घनफलस्य नव
१० । १० । ४
कषाय
देना । ऐसा करनेसे प्रमाणरूप घनांगुलके संख्यातवें भाग एक देवके शरीरकी अवगाहना हुई । इस अवगाहनासे पहले जो स्वस्थानस्वस्थानमें जीवोंका प्रमाण कहा था, , उसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो, उतना स्वस्थानस्वस्थानका क्षेत्र जानना ।
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वेदना समुद्घात और कषाय समुद्घातमें आत्मा के प्रदेश मूल शरीरसे बाहर निकलकर एक प्रदेश क्षेत्रको रोर्के या एक-एक प्रदेश बढ़ते-बढ़ते उत्कृष्ट क्षेत्रको रोकें, तो चौड़ाई में मूल शरीर से तिगुने क्षेत्रको रोकते हैं और ऊँचाई मूल शरीर प्रमाण ही है । इसका घनरूप क्षेत्रफल करनेपर मूल शरीर के क्षेत्रफलसे नौगुणा क्षेत्रफल होता है । सो जघन्य एक प्रदेश और उत्कृष्ट मूल शरीर से नौगुणा क्षेत्र हुआ । इनका समीकरण करनेसे एक जीवके मूलशरीर से साढ़े चार गुना क्षेत्र हुआ। शरीरका प्रमाण पहले घनांगुलके संख्यातवें भाग कहा था । सो उसे साढ़े चार गुना करनेपर एक जोव सम्बन्धी क्षेत्र होता है । उससे वेदना समुद्घातवाले जीवोंके प्रमाणको गुणा करनेपर वेदना समुद्घात सम्बन्धी क्षेत्र आता है । तथा कषाय समुद्घातवाले जीवोंके प्रमाणसे गुणा करनेपर कषाय समुद्घात सम्बन्धी क्षेत्र आता है । विहार करते हुए देवोंके मूलशरीरसे बाहर आत्माके प्रदेश फैलें, तो वे प्रदेश एक जी की अपेक्षा संख्यात योजन तो लम्बे और सूच्यंगुलके संख्यातवें भाग प्रमाण चौड़े व ऊँचे क्षेत्रको रोकते हैं । उसका क्षेत्रफल संख्यात घनांगुल प्रमाण होता है। इससे पूर्व में कहे विहारवत्स्वस्थानवाले जीवोंके प्रमाणको गुणा करनेपर सब जीवोंके बिहारवत्स्वस्थान २५ १. म राशि ७ । ३ । ३ । ७ । ३ । ७ मूल ं । २. म मा मूल ।
१० । १० । ४
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