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________________ ܐ ७४२ गो० जीवकाण्डे प्रदेश विसर्पणक्रमदिदं वृद्धियुत्कृष्टदिदं त्रिगुणितविस्तादिदं पुट्टिद राशि मूलराशियं नोडलु नवगुण १।२ मक्कु ६ । ६ । ६।००।६।९ मा नवगुणमूलराशियं मुखभूमि समासार्द्ध मध्यफलमे - ७ ७७ २० ७३।३ १०। दुमुखं शून्यमक्कुमे दोडे द्वितीयविकल्पं मोदगोंड प्रदेशवृद्धिक्रममप्पुर्दारमा शून्यमं कूडिदलियिसिदोडे समीकरणद पुट्टिद मध्यमावगाहनं नवार्द्धघनांगुल संख्यातैकभागमवकुमदरिदं वेदना ५ समुद्घातराशियमं कषायसमुद्घातराशियुमं गुणिसुवुदु वेद ७३ १०१४ Jain Education International ||__L = १४६।९ ४ । ६५ = ५५५२ ॥1 = १४६।९ मत्तं संख्यातयोजनायाममुं सूच्यंगुल संख्यात भागविष्कंभोत्सेधमुमागि मूल४ । ६५ । ५५५ । २ संख्येयभागेन ६ हतस्तत्क्षेत्रं स्यात् । वेदनाकषायराशी द्वौ तत्समुद्घातयोर्मूलशरीरात्प्रदेशोत्तरवृद्धचा उत्कृष्टविकल्पस्य त्रिगुणितव्यासस्य वासो तिगुणो परिहीत्याद्यानीत - ७ । ३ । ३ । ७ । ३ । ७ घनफलस्य नव १० । १० । ४ कषाय देना । ऐसा करनेसे प्रमाणरूप घनांगुलके संख्यातवें भाग एक देवके शरीरकी अवगाहना हुई । इस अवगाहनासे पहले जो स्वस्थानस्वस्थानमें जीवोंका प्रमाण कहा था, , उसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो, उतना स्वस्थानस्वस्थानका क्षेत्र जानना । १५ वेदना समुद्घात और कषाय समुद्घातमें आत्मा के प्रदेश मूल शरीरसे बाहर निकलकर एक प्रदेश क्षेत्रको रोर्के या एक-एक प्रदेश बढ़ते-बढ़ते उत्कृष्ट क्षेत्रको रोकें, तो चौड़ाई में मूल शरीर से तिगुने क्षेत्रको रोकते हैं और ऊँचाई मूल शरीर प्रमाण ही है । इसका घनरूप क्षेत्रफल करनेपर मूल शरीर के क्षेत्रफलसे नौगुणा क्षेत्रफल होता है । सो जघन्य एक प्रदेश और उत्कृष्ट मूल शरीर से नौगुणा क्षेत्र हुआ । इनका समीकरण करनेसे एक जीवके मूलशरीर से साढ़े चार गुना क्षेत्र हुआ। शरीरका प्रमाण पहले घनांगुलके संख्यातवें भाग कहा था । सो उसे साढ़े चार गुना करनेपर एक जोव सम्बन्धी क्षेत्र होता है । उससे वेदना समुद्घातवाले जीवोंके प्रमाणको गुणा करनेपर वेदना समुद्घात सम्बन्धी क्षेत्र आता है । तथा कषाय समुद्घातवाले जीवोंके प्रमाणसे गुणा करनेपर कषाय समुद्घात सम्बन्धी क्षेत्र आता है । विहार करते हुए देवोंके मूलशरीरसे बाहर आत्माके प्रदेश फैलें, तो वे प्रदेश एक जी की अपेक्षा संख्यात योजन तो लम्बे और सूच्यंगुलके संख्यातवें भाग प्रमाण चौड़े व ऊँचे क्षेत्रको रोकते हैं । उसका क्षेत्रफल संख्यात घनांगुल प्रमाण होता है। इससे पूर्व में कहे विहारवत्स्वस्थानवाले जीवोंके प्रमाणको गुणा करनेपर सब जीवोंके बिहारवत्स्वस्थान २५ १. म राशि ७ । ३ । ३ । ७ । ३ । ७ मूल ं । २. म मा मूल । १० । १० । ४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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